बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन
अध्याय - 5
नीति के एक साधन के रूप में युद्ध : अतीत, वर्तमान एवं भावी
(War as an Instrument of Policy: Past, Present and Future)
प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
अथवा
अतीत, वर्तमान तथा भावी युद्धों में नीति के साधन के रूप में युद्धों के प्रयोग पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
युद्धों का प्रयोग प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक प्रायः ही राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में होता रहा है। जहाँ एक ओर ठोस नीतियों के अभाव में युद्ध का संचालन दुष्कर होता है वहीं नीतियों की सफलता भी युद्ध के स्वरूप व उसके संचालन पर निर्भर करती है। स्त्रातेजी, सामरिकी व सम्भरण तन्त्र आदि का निर्धारण नीति के लक्ष्यों को दृष्टिगत रखकर ही किया जाता है।
अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किये गये प्रयत्नों में कहीं न कहीं शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है, क्योंकि शक्ति नीति का ऐसा मूल तत्व है जिसके बिना इच्छाओं की पूर्ति को सुनिश्चित किया ही नहीं जा सकता। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सतत् प्रयत्नशील रहने के परिणामस्वरूप शक्ति की आवश्यकता निरन्तर बनी ही रहती है तथा धीरे-धीरे शक्ति संचय राष्ट्र का परम लक्ष्य बन जाता है। यही कारण है कि आवश्यकताओं की पूर्ति तथा शक्ति के पारस्परिक सम्बन्धों को शक्ति संघर्ष की संज्ञा दी जाती है। राष्ट्रीय नीति के सफल क्रियान्वयन हेतु शक्ति का प्रयोग करना पड़ सकता है जो युद्ध के रूप में भी सम्भव है। स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की इकाइयाँ विभिन्न समुदाय अथवा दल न होकर राष्ट्र ही होते हैं जिनकी इच्छाओं को राष्ट्रीय हित तथा उनके पारस्परिक मतभेदों को विवाद कहते हैं, किन्तु शक्ति का तत्व यथावत् रहता है।
इस प्रकार नीति तथा युद्ध के सम्बन्ध को समझने के लिए राष्ट्रीय हित तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को भी समझना होगा जिसमें विवाद, उसकी प्रकृति तथा शक्ति उसके साधन हैं। उक्त सभी तथ्यों में विवाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि राष्ट्रों के मध्य विवाद न उत्पन्न होने की स्थिति में राष्ट्रीय हितों की असुरक्षा तथा शक्ति प्रयोग का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता। यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विवाद का स्थान महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना विवाद के सहयोग की भावनायें उत्पन्न ही नहीं होती हैं।
विश्व इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ ऐसे कई राष्ट्रों के मध्य विवाद उत्पन्न होने के बाद युद्धों का प्रारम्भ हुआ है जो अन्तर्राष्ट्रीय नीति को प्रभावित करते रहे हैं।
वस्तुतः राष्ट्रों के परस्पर विरोधी हित ही युद्धों का मूल स्रोत हैं, क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र, दूसरे के आचरण पर अधिक नियन्त्रण रखकर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने हेतु जो कदम उठाता है वही धीरे-धीरे विवाद अथवा युद्धों का कारण बन जाता है। दूसरे राष्ट्रों के आचरण पर अधिक से अधिक नियन्त्रण स्थापित करके अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा ही विदेश नीति का लक्ष्य होता है। रक्षा अध्ययन की दृष्टि से शक्ति का आंकलन सशस्त्र सेनाओं के सामर्थ्य से ही किया जाता है।
जहाँ तक युद्ध का सन्दर्भ है यह राजनीति के पीछे छुपा रहने वाला ऐसा कारक है, जिसे अन्तिम साधन के रूप में राष्ट्र-राज्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति हेतु अपनाते हैं। यद्यपि युद्ध का सामान्य आशय सैन्य कार्यवाहियों से ही लगाया जाता है, किन्तु ऐसा नहीं है। हिंसा युद्ध का मात्र एक लक्षण है, जबकि उससे पूर्व विभिन्न शान्तिपूर्ण विधियाँ साधन के रूप में अपनाई जाती हैं। संक्षेप में, राजनीति के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निम्न विधियों का सहारा लिया जाता है
1. कूटनीति (Diplomacy)
2. मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological Warfare)
3. आर्थिक साधन (Economic Instrument)
4. साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद (Imperialism and Colonialism)
5. युद्ध राजनीति के साधन के रूप में (War as an Instrument of National Policy) -
अतः यह स्पष्ट है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में युद्ध को एक राजनैतिक कार्य के रूप में मान्यता देने तथा राष्ट्रीय हितों की पूर्ति सुनिश्चित करने में इसकी प्रमुखता ने युद्ध व राजनीति के पारस्परिक सम्बन्धों को पर्याप्त प्रगाढ़ता प्रदान करके, इसे शास्त्रीय चिन्तन का विषय बना दिया है।
युद्ध नीति के साधन के रूप में यद्यपि नीति के क्रियान्वयन हेतु एक साधन के रूप में युद्ध का प्रयोग उसी समय से होता रहा है जबसे युद्ध व राजनीति का अस्तित्व है, किन्तु बीसवीं शताब्दी में युद्ध के राजनैतिक स्वरूप में आये क्रान्तिकारी परिवर्तनों व युद्ध की व्यापकता के फलस्वरूप दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध काफी संवेदनशील हो गये हैं। प्राचीन काल में राज्य की सम्पूर्ण शक्ति राजा में ही निहित होने के कारण राज्य की नीति का निर्धारण, राज्य के सम्पूर्ण साधनों को संगठित करने, युद्ध नीति का निर्धारण तथा लड़ाइयों में भाग लेकर उसके परिणामों का श्रेय लेने तक की सम्पूर्ण कार्यवाहियाँ राजा तक ही सीमित थीं। जहाँ एक ओर सैन्य संगठन, सैन्य गतिविधियाँ व लड़ाइयों में संक्रियात्मक नियन्त्रण जैसे सभी कार्यों के प्रति जनरल ही उत्तरदायी होते थे वहीं दूसरी ओर सैन्य व राजनीतिक क्षेत्रों में नागरिकों की प्रमुख भूमिका होने के बावजूद उन्हें प्राय: दृष्टा का ही महत्व प्राप्त था। लेकिन तकनीकी विकास, राजनैतिक चेतना, युद्धं क्षेत्र की व्यापकता तथा सैन्य अधिकारियों व राजनीतिज्ञों के उत्तरदायित्व की पारस्परिक निर्भरता आदि कारणों ने युद्ध व राजनीति के पारस्परिक सम्बन्धों में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया है। आणविक हथियारों के प्रादुर्भाव व दिन-प्रतिदिन के अति संहारक हथियारों के भण्डारण ने युद्ध को एक ऐसी मिश्रित प्रक्रिया बना दिया है जिससे रक्षा मन्त्रालय के अतिरिक्त सरकार के अन्य मन्त्रालयों की भूमिका प्रमुख होने के अतिरिक्त युद्ध निर्णयों में राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप बढ़ गया है। युद्ध नीति का निर्धारण, राष्ट्रीय संसाधनों की लामबन्दी, युद्ध लक्ष्य का चुनाव, युद्ध का निर्धारण तथा वर्तमान अति विनाशक व प्रभावी हथियार (परमाणु बमों) के प्रयोग का निर्णय पूर्णत: राजनीतिज्ञों के हाथ में सिमटकर रह गया है। यही कारण है कि युद्ध को एक राजनैतिक कार्य (Political Act) व राज्य के वृहद् कार्य (War is the great affair of the state) जैसी शब्दावलियों से सम्बोधित किया जा रहा है।
इस प्रकार कोई भी राष्ट्र अपनी राज्य नीति (State Policy)- के क्रियान्वयन हेतु युद्ध को एक साधन के रूप में प्रयुक्त करता है। क्लाजविट्ज ने युद्ध को राष्ट्र नीति से सम्बन्धित करते हुए कहा है कि "युद्ध राष्ट्र नीति को संचालित करने के विभिन्न साधनों में से एक साधन के अतिरिक्त कुछ नहीं है।" इस प्रकार क्लाजविट्ज ने उक्त कथन के माध्यम से यहाँ एक ओर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में युद्ध की उपादेयता को रेखांकित करने की कोशिश की है वहीं राजनीति (विदेश नीति) के लक्ष्य एवं उद्देश्यों के अनुसार ही सैन्य लक्ष्य निर्धारण व युद्ध संचालन का सुझाव दिया है। वास्तव में शांतिकाल में प्रत्येक राष्ट, अपनी भू-स्त्रोतेजिक अवस्थिति, संसाधन जनमत, सैन्य सामर्थ्य तथा सांस्कृतिक व सामाजिक संरचनाओं के सम्मिश्रण से राष्ट्रीय हितों की पूर्ति सुनिश्चित करने वाली एक विदेश नीति का निर्धारण करता है किन्तु जब कोई पड़ोसी या अन्य देश उसकी नीतियों का विरोध करता है तो उसे राष्ट्रीय हितों के सुरक्षार्थ राजनीतिक, आर्थिक, कूटनीतिक व मनोवैज्ञानिक विधियों का सहारा लेकर विरोध के दमन हेतु विभिन्न कदम उठाने पड़ते हैं। उक्त उपाय के असफल होने पर अन्ततः युद्ध का सहारा लेने हेतु विवश होना पड़ता है। इससे यह स्पष्ट है कि राजनीति के संचालन में निश्चित रूप से युद्ध कहीं न कहीं नीति के पीछे छुपा रहता है।
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- प्रश्न- स्त्रातेजी अथवा कूटयोजना (Strategy) का क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्त्रातेजी का उद्देश्य क्या है? स्त्रातेजी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये क्या उपाय किये जाते हैं?
- प्रश्न- स्त्रातेजी के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महान स्त्रातेजी पर एक लेख लिखिये तथा स्त्रातेजी एवं महान स्त्रातेजी में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक भूगोल से आप क्या समझते हैं? सैन्य दृष्टि से इसका अध्ययन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- स्त्रातेजी का अर्थ तथा परिभाषा लिखिये।
- प्रश्न- स्त्रातेजिक गतिविधियाँ तथा चालें किसे कहते हैं तथा उनमें क्या अन्तर है?
- प्रश्न- महान स्त्रातेजी (Great Strategy) क्या है?
- प्रश्न- पैरालिसिस स्त्रातेजी पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के विकास पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते है? युद्ध की विशेषताएँ बताते हुए इसकी सर्वव्यापकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध और शान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
- प्रश्न- युद्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के सिद्धान्तों में प्रशासन (Administration) का क्या महत्व है?
- प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में युद्ध की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अतीत को युद्धों की तुलना में वर्तमान समय में युद्धों की संख्या में कमी का क्या कारण है? प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध की प्रकृति और विशेषताओं की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला स्त्रातेजी पर माओत्से तुंग के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए गुरिल्ला युद्ध के चरणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चे ग्वेरा के गुरिल्ला युद्ध सम्बन्धी विभिन्न विचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए तथा गुरिल्ला विरोधी अभियान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रति विप्लवकारी (Counter Insurgency) युद्ध के तत्वों तथा अवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चीन की कृषक क्रान्ति में छापामार युद्धकला की भूमिका पर अपने विचार लिखिए।
- प्रश्न- चे ग्वेरा ने किन तत्वों को छापामार सैन्य संक्रिया हेतु परिहार्य माना है?
- प्रश्न- छापामार युद्ध कर्म (Gurilla Warfare) में चे ग्वेरा के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध में प्रचार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध कर्म की स्त्रातेजी और सामरिकी पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- छापामार युद्ध को परिभाषित करते हुए इसके सम्बन्ध में चे ग्वेरा की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लेनिन की गुरिल्ला युद्ध-नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध क्या है?
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध क्या है? 'आधुनिक युद्ध अन्ततः मनोवैज्ञानिक है' विस्तृत रूप से विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सैन्य मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध के कौन-कौन से हथियार हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रचार को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अफवाह (Rumor) क्या है? युद्ध में इसके महत्व का उल्लेख करते हुए अफवाहों को नियंत्रित करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आतंक (Panic) से आप क्या समझते हैं? आंतंक पर नियंत्रण पाने की विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भय (Fear) क्या है? युद्ध के दौरान भय पर नियंत्रण रखने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बुद्धि परिवर्तन (Brain Washing) क्या हैं? बुद्धि परिवर्तन की तकनीकों तथा इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कूटनीतिक प्रचार (Strategic Propaganda ) एवं समस्तान्त्रिक प्रचार (Tactical Propaganda ) में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रचार एवं अफवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- युद्ध एक आर्थिक समस्या के रूप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध राजनीतिक सैनिक कारणों की अपेक्षा सामाजिक आर्थिक कारकों के कारण अधिक होते हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक क्षमता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध में आर्थिक व्यवस्था का महत्व बताइये।
- प्रश्न- युद्ध को प्रभावित करने वाले तत्वों में से प्राकृतिक संसाधन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक आर्थिक क्षमताएँ व दुर्बलताएँ बताइये।
- प्रश्न- युद्धोपरान्त उत्पन्न विभिन्न आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिये
- प्रश्न- युद्ध की आर्थिक समस्यायें लिखिए?
- प्रश्न- युद्ध के आर्थिक साधन क्या हैं?
- प्रश्न- परमाणु भयादोहन के हेनरी किसिंजर के विचारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- आणविक भयादोहन पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- परमाणु भयादोहन और रक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित सैन्य विचारकों के विचार लिखिए। (i) आन्द्रे ब्यूफ्रे (Andre Beaufre), (ii) वाई. हरकाबी (Y. Harkabi), (iii) लिडिल हार्ट (Liddle Hart), (iv) हेनरी किसिंजर (Henery Kissinger) |
- प्रश्न- परमाणु युग में सशस्त्र सेनाओं की भूमिका की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मैक्यावली से परमाणु युग तक के विचारों एवं प्रचलनों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आणविक युग में युद्ध की आधुनिक स्रातेजी को कैसे प्रयोग किया जायेगा?
- प्रश्न- 123 समझौते पर विस्तार से लिखिए।
- प्रश्न- परमाणविक युद्ध की प्रकृति एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आणविक शीत से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नाभिकीय तनाव को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परमाणु बम का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ हुआ?
- प्रश्न- हेनरी किसिंजर के नाभिकीय सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- हरकावी के नाभिकीय भय निवारण- सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आणविक युग पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक तथा जैविक अस्त्र क्या हैं? इनके प्रयोग से होने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक युद्ध किसे कहते हैं? विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
- प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध के प्रमुख आयामों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।