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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2635
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन

प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।

अथवा
"प्राचीन भारत में दूत व्यवस्था काफी उन्नत थी।' दूतों के कार्यों का उल्लेख करते हुए इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
कौटिल्य द्वारा अर्थशास्त्र में वर्णित राजदूतों के वर्गीकरण तथा कर्त्तव्यों की विवेचना कीजिये।

सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. राजदूत कितने प्रकार के होते थे? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
2. महाभारत में वर्णित दूत प्रथा पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर -

राजदूत
(Ambassadors)

राजदूत का अर्थ "राजदूत का अभिप्राय है संदेश ले जाने वाला।' 'राजदूत किसी राजा अथवा राज्य द्वारा नियुक्त किया गया वह व्यक्ति है जो किसी दूसरे राजा अथवा राज्य के पास संदेश पहुँचाने का कार्य करता है।"

प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक संदेश आदान-प्रदान करने की प्रथा चली आ रही है। वैदिक साहित्य में भी अनेकों स्थान पर दूतों का उल्लेख है। इससे यह समझा जा सकता है कि राजदूत प्राचीन समय से ही एक सम्मानित व्यक्ति समझा जाता है। रामायण, महाभारत, पुराण इन सभी पुस्तकों में ये सिद्ध होता है कि उस समय किसी भी अभियान या युद्ध के समय राजा अपने राजदूत को विपक्षी राजा के पास भेजकर झगड़े का शान्तिपूर्वक निपटारा करवाने का प्रयत्न करते थे। रामायण से यह पता लगता है कि उस समय संदेशवाहक का काम अंगद ने किया था जोकि राम द्वारा यह संदेश लेकर रावण के दरबार में गये थे कि वह सीता को वापस करें या फिर युद्ध के लिये तैयार हो जायें। महाभारत में भी राजदूत का कार्य श्रीकृष्ण ने किया था।

हिन्दू साम्राज्य काल में भी राजदूतों का महत्व रहा है। चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनान के राजा सेल्युकस का भेजा हुआ राजदूत मेगस्थनीज था। गुप्त राजाओं के काल में राजदूतों की प्रथा ज्यों की त्यों बनी रही। जब भारत अनेक राज्यों में बंट गया तो भी ये परम्परा वैसी की वैसी है। आज भी राज्यों के पास अपना एक राजदूत होता है जो दूसरे राज्यों तथा देशों तक संदेश लाते तथा पहुँचाते हैं। सभी देशों के अपने राजदूतों द्वारा हमें आज भी सभी देशों के समाचार आसानी से मिलते रहते हैं।

दूतों के प्रकार -

कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में राजदूतों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया है -

1. विसृष्टार्थ या पुरुषोत्तम इन दूतों को पूर्णरूप से सन्धि सम्बन्धी निर्णय लेने का अधिकार होता था। इन दूतों में मंत्री के समान योग्यता तथा अधिकार होता है।

2. परिमितार्थ या मध्यम नर इस प्रकार के दूतों में मंत्री से कुछ कम योग्यता होती थी। ये राजा के आदेश के अनुसार ही कार्य करते थे। राजा इनको कोई एक ही कार्य सौंपता था और इन्हें राजा के आदेश के अनुसार ही वार्तालाप करने का अधिकार था।

3. निसृष्टार्थ या पुरुषाभ्यम तीसरे प्रकार के दूत निसृष्टार्थ कहलाते थे। इनमें सभी दूतों से कम योग्यता तथा अधिकार होते थे। इन्हें केवल सन्देशवाहक का ही कार्य करना पड़ता था। इन्हें केवल अपने राजा का सन्देश ज्यों का त्यों जाकर दूसरे राजा को देना होता था।

राजदूतों की योग्यता सभी विद्वानों ने दूतों में अनेक प्रकार की योग्यताएँ बताई हैं। जो इस प्रकार है-.

1. दूत सभी वेद वेदांगों का ज्ञाता हो वह निडर तथा अपने राजा के प्रति वफादार हो तथा स्वयं का बलिदान करने से न झिझके।

2. दूत सत्य वक्ता और तीव्र स्मरण शक्ति वाला होना चाहिए।

3. दूत सभी विधाओं में निपुण कर्त्तव्यनिष्ठ तथा दूसरों के मनोभावों को समझ लेने वाला होना चाहिए।

4. भारी से भारी आपत्तियों में भी राजा की सहायता करने की योग्यता राजदूत में होनी चाहिए।

5. दूत में अपनी बात निडर होकर कह सकने का साहस होना चाहिए।

6. वह स्पष्ट वक्ता तथा शस्त्र मिथ्या में निपुण होना चाहिए।

महाभारत में भीष्म पितामह ने एक स्थान पर कहा है कि दूत उच्च कुल का वाचल, चतुरभाषी, सय वक्ता और तीव्र स्मरण शक्ति वाला होना चाहिए।

दूतों के कार्य / कर्त्तव्य

राजदूत का कार्य केवल एक राजा का सन्देश दूसरे राजा के पास पहुँचाना ही नहीं होता था बल्कि और भी अनेक कार्य राजदूत के हुआ करते थे। दूत के कर्त्तव्यों के बारे में प्राचीन विद्वान प्रायः एकमत थे। कौटिल्य ने इनके कार्यों को विस्तारपूर्वक बताया है जो निम्न हैं -

1. राजदूत को शत्रु के राज्य में सेना के निवास के उपयुक्त स्थान का ब्योरा रखना चाहिए।

2. राजदूतों को शत्रु राज्य के महत्वपूर्ण व्यक्तियों से घनिष्ठता बढ़ानी चाहिए।

3. शत्रु तथा मित्र राज्यों की सैनिक शक्ति का पता लगाने का भी प्रयत्न करना चाहिए।

4. शत्रु के दुर्ग, सैनिक छावनियां, आर्थिक दशा, नागरिकों के आचार-विचार तथा शत्रु सेना और राजा की कमजोरियों का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।

5. शत्रु राज्य तथा अपने राज्य में अपनी सेना के निवास एवं युद्ध के उपयुक्त स्थानों का भी परिचय दूत को होना चाहिए।

6. वह अपने राजा और शत्रु राजा दोनों के सैन्य शिविर, युद्धोपयोगी भूमि और युद्ध से हटने की भूमि को तुलनात्मक दृष्टि से देखे।

7. दूत को अपने शत्रु की शक्ति का भी परिचय प्राप्त कर लेना चाहिए।

8. दूत को चाहिये कि वह शत्रु राज्य एवं सेना में फूट डालकर वहां के महत्वपूर्ण ठिकानों का पता लगा ले।

9. दूतों को ये भी चाहिये कि वे शत्रु देश में रहते हुए अपने शत्रु के गुप्तचर विभाग के कार्यों का ठीक प्रकार से निरीक्षण करते रहें।

10. शत्रु सेना को रसद आदि पहुँचाने वाले व्यक्तियों को भगा देना तथा अपनी सेना में आए उनके मूढ़ पुरुषों के प्रयत्नों को निष्फल करना, दूसरे देश में बन्दी बने अपने व्यक्तियों को छुटाने का प्रयत्न करना भी दूतों के कार्य हैं।.

प्राचीन समय में राजदूत को एक बहुत ही सम्मानित व्यक्ति समझा जाता था उसे राज्य सिंहासन के समीप ही स्थान दिया जाता था। उनकी बात ध्यानपूर्वक सुनी जाती थी। वह राजा के सामने कितनी ही अप्रिय बात कहे राजा का यह धर्म था कि उसे सुरक्षित उसके राज्य तक जाने दे क्योंकि दूत जो कहता था वह उसके राजा का दिया हुआ सन्देश होता था।

आधुनिक समय के राजदूतों की भाँति प्राचीन भारत के राजदूत विदेशी दरबार में स्थायी रूप से साधारणतया नहीं रहा करते थे। वे किसी विशिष्ट कार्य के लिये भेजे जाते थे जिसे वे करने के पश्चात वापस लौट आते थे।

राजदूतों के कार्यों के बारे में डा. चक्रवर्ती ने लिखा है कि "भारत में राजदूत कुछ परम्परागत नियमों से सुरक्षित एक सम्मानित चर मात्र ही होता था।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- स्त्रातेजी अथवा कूटयोजना (Strategy) का क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- स्त्रातेजी का उद्देश्य क्या है? स्त्रातेजी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये क्या उपाय किये जाते हैं?
  3. प्रश्न- स्त्रातेजी के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  4. प्रश्न- महान स्त्रातेजी पर एक लेख लिखिये तथा स्त्रातेजी एवं महान स्त्रातेजी में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  5. प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक भूगोल से आप क्या समझते हैं? सैन्य दृष्टि से इसका अध्ययन क्यों आवश्यक है?
  6. प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
  7. प्रश्न- स्त्रातेजी का अर्थ तथा परिभाषा लिखिये।
  8. प्रश्न- स्त्रातेजिक गतिविधियाँ तथा चालें किसे कहते हैं तथा उनमें क्या अन्तर है?
  9. प्रश्न- महान स्त्रातेजी (Great Strategy) क्या है?
  10. प्रश्न- पैरालिसिस स्त्रातेजी पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- युद्धों के विकास पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  13. प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते है? युद्ध की विशेषताएँ बताते हुए इसकी सर्वव्यापकता पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
  15. प्रश्न- युद्ध और शान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते हैं?
  17. प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
  19. प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
  20. प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
  21. प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
  22. प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
  23. प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
  25. प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
  27. प्रश्न- युद्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- युद्धों के सिद्धान्तों में प्रशासन (Administration) का क्या महत्व है?
  29. प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
  30. प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
  31. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में युद्ध की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- अतीत को युद्धों की तुलना में वर्तमान समय में युद्धों की संख्या में कमी का क्या कारण है? प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- आधुनिक युद्ध की प्रकृति और विशेषताओं की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- आधुनिक युद्ध को परिभाषित कीजिए।
  35. प्रश्न- गुरिल्ला स्त्रातेजी पर माओत्से तुंग के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए गुरिल्ला युद्ध के चरणों पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- चे ग्वेरा के गुरिल्ला युद्ध सम्बन्धी विभिन्न विचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  37. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए तथा गुरिल्ला विरोधी अभियान पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- प्रति विप्लवकारी (Counter Insurgency) युद्ध के तत्वों तथा अवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- चीन की कृषक क्रान्ति में छापामार युद्धकला की भूमिका पर अपने विचार लिखिए।
  40. प्रश्न- चे ग्वेरा ने किन तत्वों को छापामार सैन्य संक्रिया हेतु परिहार्य माना है?
  41. प्रश्न- छापामार युद्ध कर्म (Gurilla Warfare) में चे ग्वेरा के योगदान की विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध में प्रचार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध कर्म की स्त्रातेजी और सामरिकी पर प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- छापामार युद्ध को परिभाषित करते हुए इसके सम्बन्ध में चे ग्वेरा की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- लेनिन की गुरिल्ला युद्ध-नीति की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध क्या है?
  47. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- आधुनिक युद्ध क्या है? 'आधुनिक युद्ध अन्ततः मनोवैज्ञानिक है' विस्तृत रूप से विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- सैन्य मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध के कौन-कौन से हथियार हैं? व्याख्या कीजिए।
  51. प्रश्न- प्रचार को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- अफवाह (Rumor) क्या है? युद्ध में इसके महत्व का उल्लेख करते हुए अफवाहों को नियंत्रित करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- आतंक (Panic) से आप क्या समझते हैं? आंतंक पर नियंत्रण पाने की विधि का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- भय (Fear) क्या है? युद्ध के दौरान भय पर नियंत्रण रखने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- बुद्धि परिवर्तन (Brain Washing) क्या हैं? बुद्धि परिवर्तन की तकनीकों तथा इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
  56. प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- कूटनीतिक प्रचार (Strategic Propaganda ) एवं समस्तान्त्रिक प्रचार (Tactical Propaganda ) में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- प्रचार एवं अफवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध की उपयोगिता बताइये।
  61. प्रश्न- युद्ध एक आर्थिक समस्या के रूप में विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- आधुनिक युद्ध राजनीतिक सैनिक कारणों की अपेक्षा सामाजिक आर्थिक कारकों के कारण अधिक होते हैं। व्याख्या कीजिए।
  64. प्रश्न- आर्थिक क्षमता से आप क्या समझते हैं?
  65. प्रश्न- आधुनिक युद्ध में आर्थिक व्यवस्था का महत्व बताइये।
  66. प्रश्न- युद्ध को प्रभावित करने वाले तत्वों में से प्राकृतिक संसाधन पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक आर्थिक क्षमताएँ व दुर्बलताएँ बताइये।
  68. प्रश्न- युद्धोपरान्त उत्पन्न विभिन्न आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिये
  69. प्रश्न- युद्ध की आर्थिक समस्यायें लिखिए?
  70. प्रश्न- युद्ध के आर्थिक साधन क्या हैं?
  71. प्रश्न- परमाणु भयादोहन के हेनरी किसिंजर के विचारों की व्याख्या कीजिये।
  72. प्रश्न- आणविक भयादोहन पर एक निबन्ध लिखिये।
  73. प्रश्न- परमाणु भयादोहन और रक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित सैन्य विचारकों के विचार लिखिए। (i) आन्द्रे ब्यूफ्रे (Andre Beaufre), (ii) वाई. हरकाबी (Y. Harkabi), (iii) लिडिल हार्ट (Liddle Hart), (iv) हेनरी किसिंजर (Henery Kissinger) |
  74. प्रश्न- परमाणु युग में सशस्त्र सेनाओं की भूमिका की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- मैक्यावली से परमाणु युग तक के विचारों एवं प्रचलनों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- आणविक युग में युद्ध की आधुनिक स्रातेजी को कैसे प्रयोग किया जायेगा?
  77. प्रश्न- 123 समझौते पर विस्तार से लिखिए।
  78. प्रश्न- परमाणविक युद्ध की प्रकृति एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- आणविक शीत से आप क्या समझते हैं?
  80. प्रश्न- नाभिकीय तनाव को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- परमाणु बम का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ हुआ?
  82. प्रश्न- हेनरी किसिंजर के नाभिकीय सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T) से आप क्या समझते हैं?
  84. प्रश्न- हरकावी के नाभिकीय भय निवारण- सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- आणविक युग पर प्रकाश डालिए।
  86. प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
  87. प्रश्न- रासायनिक तथा जैविक अस्त्र क्या हैं? इनके प्रयोग से होने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- रासायनिक युद्ध किसे कहते हैं? विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए।
  89. प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
  91. प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  92. प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
  93. प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
  94. प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध के प्रमुख आयामों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  95. प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।

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