बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन
प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
अथवा
युद्ध की चक्रक प्रक्रिया पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर :
युद्ध की चक्रक प्रक्रिया की स्थितियाँ - युद्ध के चक्र के विषय में सबसे पहले भारतीय लेखक जनरल पलित ने विचार प्रकट किये हैं। यह प्रतिपादित एवं स्थापित किया जा चुका है कि युद्ध एक अनन्त, अबाध्य एवं निरन्तर चलने वाली विशेष महत्वपूर्ण मानवीय सामाजिक एवं राष्ट्रीय प्रक्रिया है। इस तथ्य की पुष्टि हेतु यहाँ पर युद्ध प्रक्रिया से सम्बन्धित उन स्थितियों का वर्णन किया जा रहा है जो उसे अबाध्यता प्रदान करती है। इन स्थितियों को युद्ध की चक्रक प्रक्रिया का नाम दिया जाता है। युद्ध की चक्रक प्रक्रिया में निम्नलिखित चार स्थितियों को समाहित किया जाता है -
1. नीति (Policy) - राष्ट्रीय युद्ध नीति का निर्धारण तथा इस निर्धारित नीति के कार्यान्वयन हेतु राष्ट्रीय संसाधनों तथा राष्ट्रीय अर्थतंत्र का दोहन, नियोजन एवं समन्वय करने के साथ-साथ सैन्य शक्ति के अर्जन के लिए नीति निर्धारित की जाती है और सेना की भर्ती करने तथा उसके प्रशिक्षण की योजना का निर्माण किया जाता है।
2. नियोजन (Planning) - इस स्थिति में प्रथम चरण में निर्धारित युद्ध नीति सम्बन्धी योजना को समायोजित आधार पर बहुत ही व्यापक ढंग से कार्यान्वित किया जाता है और प्रयास किया जाता है कि अपने उपलब्ध संसाधनों का श्रेष्ठतम तथा अति लाभदायक ढंग से प्रयोग कर अधिकाधिक सैन्य शक्ति का सृजन कर समुचित सैन्य बल, अर्थ बल एवं राष्ट्रीय मनोबल का विकास किया जाये जिससे कि प्रथम चरण में निर्धारित नीति को सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर, राष्ट्रीय हितों का संरक्षण एवं सम्बर्द्धन किया जा सके। इस द्वितीय चरण में निम्नलिखित दो प्रकार का नियोजन सम्बन्धी योजनाओं का निर्माण किया जाता है
(i) प्रशासकीय नियोजन प्रशासकीय नियोजन के अन्तर्गत भावी युद्ध की संक्रियात्मक आवश्यकताओं एवं योजना के अनुरूप प्रशासकीय सुविधाओं का आवश्यकतानुसार विकास एवं नियोजन किया जाता है। इस नियोजन के अंतर्गत सम्भावी संक्रिया के लिये सैन्य आधारों तथा संभरण रेखाओं एवं मार्गों का निर्धारण, नियोजन एवं विकास किया जाता है जिससे कि संग्राम काल में युद्ध के विभिन्न मोर्चों पर सैन्य दलों तथा सैन्य सामानों की अपूर्ति को बनाये रखा जा सके और एक मोर्चे से आवश्यकतानुसार दूसरे मोर्चे पर अपने सैन्य को सबलीकृत करने के लिए नितान्त गतिशीलता तथा गोपनीयता के साथ प्रथम कार्यवाही करने के साथ-साथ शत्रु को ऐसे मोर्चे पर संघर्ष करने के लिए 'मजबूर कर दिया जाये जहाँ पर उसे सुविधा न हो और हम उसे अधिक क्षति पहुंचा सके।
इस नियोजन में संचरण रेखाओं को दोहरी या तेहरी रेखाओं में बनाना चाहिए जिनका स्वरूप लगभग सामान अन्तर से एवं गुप्त हो साथ ही सह सम्बन्धित भी हो जिससे शत्रु की स्थल या वायु सेना की आक्रामक कार्यवाही से एक संचरण रेखा यदि प्रभावित भी होती है तो भी दूसरी या तीसरी संचरण रेखा के द्वारा अपनी युद्धरत सेना को मजबूर किया जा सके और सम्भरण सम्बन्धित आवश्यकतानुसार की पूर्ति भी हो सके।
(ii) संक्रियात्मक नियोजन इस नियोजन के अन्तर्गत भाषिक क्षेत्र के बनवट तथा जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं के अनुरूप शत्रु की वर्तमान तथा संभावी सैन्य शक्ति का ध्यान रखते हुए समुचित सैन्य शक्ति की भर्ती या संगठन किया जाता है और विशिष्ट प्रकार के युद्ध अभियान के लिए तैयार सैनिकों तथा अफसरों को प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षण की अवधि में आगामी युद्ध की परिकल्पिक परिस्थितियों और वातावरण के आधार पर क्षेत्र का चयन किया जाता है और सभी सेनाओं को समन्वित (Coordinate) करं आक्रामक एवं प्रतिरक्षात्मक ही नहीं बल्कि अन्य प्रकार की युद्ध क्रियाओं का अभ्यास भी कराया जाता है। युद्ध अभ्यास के अनुभवों के आधार पर संक्रियात्मक योजना को सैद्धान्तिक आधार पर शुरू किया जाता है।
इस चरण में सभी गुप्त साधनों के माध्यम से शत्रु की शक्ति गतिविधि उसकी संचरण रेखाओं, गश्ती दलों की कार्यवाही तथा मन्तव्य (Intentions) का यथेष्ठ ज्ञान प्राप्त कर आक्रामक व प्रतिरक्षात्मक सैन्य संक्रियाओं की योजना को निर्धारित किया जाता है। इन योजनाओं की व्यवस्था ऐसी होती है कि नई अप्रत्याशित परिस्थिति के पैदा होने पर उसे परिवर्तित किया जा सकता है। जिस देश की सैन्य संक्रियात्मक योजना में परिवर्तनशीलता सम्बन्धी जितनी अधिक क्षमता होती है उसी अनुपात में उस देश को सरलतम विजय प्राप्त होती है। यही तत्व विभित्र सैन्य अधिकारियों की व्यावसायिक प्रवीणता, तार्किक निर्णय की क्षमता, आत्मविश्वास व निर्भयता साहस व महत्वाकांक्षा तथा पहल करने की प्रवृत्ति से प्रभावित होता है। इसी कारण युद्ध में वास्तविक विजय जितनी अधिक नेतृत्व की क्षमता से प्रभावित होती है उतनी भौतिक संसाधनों और संख्यात्मक सैन्य बल से नहीं प्रभावित होती।
3. प्रयाण (Movement) - युद्ध के चक्रक प्रक्रिया के तीसरे चरण में राष्ट्रीय नीति के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु नियोजन चरण में निर्धारित योजनानुसार सशस्त्र सैन्य दलों को गोपनीयता पूर्वक प्रयाण कराके अधिक संख्या में शत्रु के अधिक निकट पहुंचाया जाता है। जिससे कि शत्रु पर अप्रत्याशित आक्रमण किया जाता है। उसे अधिक क्षति पहुंचाने के साथ-साथ असन्तुलित व अव्यवस्थित करने में सफलता प्राप्त हो। प्रयाण की गोपनीयता केन्द्रीयकरण की आधारशिला है। तथा आक्रमण के द्वारा सफलता प्राप्त करने का साधन है। प्रयाण विधि के लिए विभिन्न सैन्य विचारकों तथा सेनानायकों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण विधियों एवं सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया है। प्रयाण के प्रथम चरण में अपनी अधिकता सैन्य शक्ति और सैन्य साज- समाज की गोपनीयता द्वारा अपने संचरण मार्गों के द्वारा सैन्य आधार पर प्रचुर मात्रा में एकत्र किया जाता है। जिनकी गोपनीयता तथा सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक हैं क्योंकि इन्हीं स्थलों से संग्राम रत सैन्य शक्ति को बल और संभरण की सुविधा प्रदान कर युद्ध के समय लड़ने के योग्य बनाये रखा जा सकता है।
4. संघर्ष ( Actual Fighting) - युद्ध के चक्रक प्रक्रिया की शुरुआत से तृतीय चरण की पूर्ण होने के अवधि के मध्य राष्ट्रीय नीति के युद्ध लक्ष्य की प्राप्ति निमित्त, समान्य, राजनैतिक एवं. राजनायिक दांव-पेंचों का क्रम लगातार चलता रहता है। परन्तु जब इन उपायों से राष्ट्रीय हित के संरक्षण एवं संवर्धन की आशा नहीं होती है और ऐसा प्रतीत होता है कि सैन्य शक्ति के वास्तविक प्रयोग से विजय प्राप्त करके निर्धारित लक्ष्य को सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकेगा तो वास्तविक सैन्य संघर्ष जो युद्ध की चक्रक प्रक्रिया का चतुर्थ चरण है उसको भी अपनाया जाता है। इस चरण में सैन्य दलों के द्वारा शत्रु की सैन्य शक्ति संचरण भागों तथा सैन्य आधारों पर अप्रत्याशित भयंकर आक्रमण करके अधिकाधिक क्षति पहुंचाई जाती है। संघर्ष स्थलों का चयन नियोजन चरण के अन्तर्गत संक्रियात्मक नियोजन द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार होता है। चतुर्थ चरण में निम्न स्तर के सेनानायकों की सैन्य क्षमता, उनका नेतृत्व तथा सैन्य मनोबल भौतिक साधनों तथा सैन्य संख्या की अपेक्षा अधिक कारगर हथियार सिद्ध होता है और इसी चरण की सफलता और असफलता पर ही देश का भविष्य निर्भर होता है। इस चरण में सफलता प्राप्ति के उपरान्त युद्ध का स्वाभाविक अन्त नहीं होता क्योंकि प्रारम्भिक पराजय से शत्रु पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण नहीं कर सकता बल्कि वह बार-बार नये मोर्चे को बनाकर युद्ध को अधिकतम अवधि तक खींचता रहता है इसलिए जब तक शत्रु अन्तिम रूप से अपनी पराजय स्वीकार नहीं करता तब तक पुनः प्रयाण, पुनः नियोजन तथा संघर्ष एवं विनाश की प्रक्रिया अबाध्य रूप से चलती रहती है और युद्ध की समाप्ति के बाद भी सम्भाविकता भावी युद्ध के लिये यह प्रक्रिया प्रथम चरण से पुनः आरम्भ होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि यौद्धिक गतिविधि निरन्तर अबाध्य रूप से होती रहती है और शान्ति काल भावी युद्ध के लिये शक्ति अर्जित करने तथा सैन्य शक्ति को प्रखर करने का काल होता है न कि शक्ति की कामना करना और असुखमय जीवन यापन करना।
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- प्रश्न- स्त्रातेजी अथवा कूटयोजना (Strategy) का क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्त्रातेजी का उद्देश्य क्या है? स्त्रातेजी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये क्या उपाय किये जाते हैं?
- प्रश्न- स्त्रातेजी के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महान स्त्रातेजी पर एक लेख लिखिये तथा स्त्रातेजी एवं महान स्त्रातेजी में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक भूगोल से आप क्या समझते हैं? सैन्य दृष्टि से इसका अध्ययन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- स्त्रातेजी का अर्थ तथा परिभाषा लिखिये।
- प्रश्न- स्त्रातेजिक गतिविधियाँ तथा चालें किसे कहते हैं तथा उनमें क्या अन्तर है?
- प्रश्न- महान स्त्रातेजी (Great Strategy) क्या है?
- प्रश्न- पैरालिसिस स्त्रातेजी पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के विकास पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते है? युद्ध की विशेषताएँ बताते हुए इसकी सर्वव्यापकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध और शान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
- प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
- प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
- प्रश्न- युद्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के सिद्धान्तों में प्रशासन (Administration) का क्या महत्व है?
- प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में युद्ध की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अतीत को युद्धों की तुलना में वर्तमान समय में युद्धों की संख्या में कमी का क्या कारण है? प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध की प्रकृति और विशेषताओं की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला स्त्रातेजी पर माओत्से तुंग के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए गुरिल्ला युद्ध के चरणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चे ग्वेरा के गुरिल्ला युद्ध सम्बन्धी विभिन्न विचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए तथा गुरिल्ला विरोधी अभियान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रति विप्लवकारी (Counter Insurgency) युद्ध के तत्वों तथा अवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चीन की कृषक क्रान्ति में छापामार युद्धकला की भूमिका पर अपने विचार लिखिए।
- प्रश्न- चे ग्वेरा ने किन तत्वों को छापामार सैन्य संक्रिया हेतु परिहार्य माना है?
- प्रश्न- छापामार युद्ध कर्म (Gurilla Warfare) में चे ग्वेरा के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध में प्रचार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध कर्म की स्त्रातेजी और सामरिकी पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- छापामार युद्ध को परिभाषित करते हुए इसके सम्बन्ध में चे ग्वेरा की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लेनिन की गुरिल्ला युद्ध-नीति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध क्या है?
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध क्या है? 'आधुनिक युद्ध अन्ततः मनोवैज्ञानिक है' विस्तृत रूप से विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सैन्य मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध के कौन-कौन से हथियार हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रचार को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अफवाह (Rumor) क्या है? युद्ध में इसके महत्व का उल्लेख करते हुए अफवाहों को नियंत्रित करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आतंक (Panic) से आप क्या समझते हैं? आंतंक पर नियंत्रण पाने की विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भय (Fear) क्या है? युद्ध के दौरान भय पर नियंत्रण रखने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बुद्धि परिवर्तन (Brain Washing) क्या हैं? बुद्धि परिवर्तन की तकनीकों तथा इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कूटनीतिक प्रचार (Strategic Propaganda ) एवं समस्तान्त्रिक प्रचार (Tactical Propaganda ) में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रचार एवं अफवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- युद्ध एक आर्थिक समस्या के रूप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध राजनीतिक सैनिक कारणों की अपेक्षा सामाजिक आर्थिक कारकों के कारण अधिक होते हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक क्षमता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आधुनिक युद्ध में आर्थिक व्यवस्था का महत्व बताइये।
- प्रश्न- युद्ध को प्रभावित करने वाले तत्वों में से प्राकृतिक संसाधन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक आर्थिक क्षमताएँ व दुर्बलताएँ बताइये।
- प्रश्न- युद्धोपरान्त उत्पन्न विभिन्न आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिये
- प्रश्न- युद्ध की आर्थिक समस्यायें लिखिए?
- प्रश्न- युद्ध के आर्थिक साधन क्या हैं?
- प्रश्न- परमाणु भयादोहन के हेनरी किसिंजर के विचारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- आणविक भयादोहन पर एक निबन्ध लिखिये।
- प्रश्न- परमाणु भयादोहन और रक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित सैन्य विचारकों के विचार लिखिए। (i) आन्द्रे ब्यूफ्रे (Andre Beaufre), (ii) वाई. हरकाबी (Y. Harkabi), (iii) लिडिल हार्ट (Liddle Hart), (iv) हेनरी किसिंजर (Henery Kissinger) |
- प्रश्न- परमाणु युग में सशस्त्र सेनाओं की भूमिका की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मैक्यावली से परमाणु युग तक के विचारों एवं प्रचलनों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आणविक युग में युद्ध की आधुनिक स्रातेजी को कैसे प्रयोग किया जायेगा?
- प्रश्न- 123 समझौते पर विस्तार से लिखिए।
- प्रश्न- परमाणविक युद्ध की प्रकृति एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आणविक शीत से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नाभिकीय तनाव को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परमाणु बम का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ हुआ?
- प्रश्न- हेनरी किसिंजर के नाभिकीय सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- हरकावी के नाभिकीय भय निवारण- सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आणविक युग पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक तथा जैविक अस्त्र क्या हैं? इनके प्रयोग से होने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक युद्ध किसे कहते हैं? विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
- प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
- प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध के प्रमुख आयामों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।