बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
अथवा
गर्भाधान के विषय में आप क्या जानती हैं? इस प्रक्रिया की कि तनी अवस्थाएँ हैं? स्पष्ट कीजिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. गर्भाधान या निषेचन से आप क्या समझते हैं?
2. गर्भाधान की प्रक्रिया में कितनी अवस्थाएँ होती हैं?
3. गर्भकालीन विकास की अवस्थाएँ बताइए।
उत्तर-
गर्भाधान की प्रक्रिया
(Process of Conception)
गर्भधारण स्त्री एवं पुरुष-कोषों के संयोग का परिणाम है। स्त्री-कोष को 'अण्डाणु' तथा पुरुष कोष को 'शुक्राणु कहा जाता है। अण्डाणु का निर्माण स्त्री की डिम्ब ग्रन्थि में होता है और शुक्राणु का निर्माण पुरुष के वृषण में होता है। पुरुष के शुक्राणु का स्त्री के अण्डाणु से संयोग होने की प्रक्रिया 'गर्भधारण' या 'निषेचन' कहलाती है अर्थात् जब पुरुष का शुक्राणु स्त्री के अण्डाणु से मिलता है तभी एक नये जीवन या भ्रूण का निर्माण होता है। यहीं से स्त्री की गर्भावस्था की यात्रा प्रारम्भ हो जाती है।
स्त्री का अण्डाणु बहुत सूक्ष्म होता है। इसकी आकृति गोलाकार होती है और इसकी परिधि प्रायः 125 मिलीमीटर होती है। यह एक खोल में सुरक्षित रहता है इसके अन्दर भोज्य पदार्थ की एक तह होती है। अण्डाणु के बीच में एक 'केन्द्रक होता है पुरुष का शुक्राणु स्त्री के अण्डाणु से कई गुना छोटा होता है और इसमें अपनी लम्बी पूँछ हिलाते हुए आगे बढ़ने की क्षमता होती है। इस प्रकार शुक्राणु में गतिशीलता की क्षमता पाई जाती है जबकि अण्डाणु स्वयं गतिशील नहीं हो सकता है। इसलिए गर्भाधान के लिये शुक्राणु को ही अण्डाणु के पास पहुँचने के लियें गतिशील होना पड़ता है।
सम्भोग के उपरान्त लाखों की संख्या में पुरुष के शुक्राणु स्त्री की योनि में प्रविष्ट हो जाते हैं। यौन समागम के 1 घण्टे के अन्दर ही वे स्त्री के योनि मार्ग से गुजरते हुए अण्डवाहिनी नलिका में पहुँचते है जब उनका संयोग परिपक्व अण्डाणु से हो जाता है तो गर्भधारण होना सम्भव हो जाता है। किन्तु यदि उनका परिपक्व अण्डाणु से संयोग नहीं हो पाता है तो वे स्वयं कुछ दिनों में नष्ट हो जाते हैं। स्त्री-पुरुष संगमोपरान्त पुरुष के शुक्राणु स्त्री के गर्भाशय गद्दा पर एकत्रित हो जाते हैं तथा तीव्र हॉरमोन आकर्षण के द्वारा अण्डावाहिनी नलिकाओं में खींच लिये जाते हैं। यहाँ पर यदि हॉरमोनयुक्त अण्डाणु उपस्थित होता है तो विभिन्न शुक्राणुओं में एक शुक्राणु उस अण्डाणु की ऊपरी सुरक्षा पर्त को तोड़कर केन्द्रक से जा मिलता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के साथ-साथ जीवन का आरम्भ हो जाता है।
जन्म के पूर्व की विकास अवस्था को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -
1. डिम्बावस्था (The Period of Ovum) - यह अवस्था गर्भाधान से लेकर दूसरे सप्ताह तक होती है। डिम्बावस्था तक इसका आकार एक समान ही बना रहता है। स्त्री के गर्भाशय तक पहुँते समय इनका आकार पिन के ऊपर वाली टोपी (head) के समान होता है। केन्द्रक के चारों ओर उपस्थित वसा द्रव के द्वारा इसको पोषण प्राप्त होता है। इसी बीच डिम्ब का कई बार विभाजन तथा उपविभाजन होता है। जिसके कारण कोशिकाओं का एक झुण्ड जैसा आकार निर्मित हो जाता है। इन कोशिकाओं की बाह्य तथा आन्तरिक परत भ्रूण के रूप में विकसित होती है। इसी बीच गर्भाशय की आन्तरिक दीवार में रक्त नलिकाओं की वृद्धि हो जाती है जिससे कि गर्भाशय की दीवार मोटी, गद्दीदार तथा मुलायम हो जाती है 10 दिनों की अवधि में यह डिम्ब गर्भाशय की दीवार में रक्त वाहिकाओं को तोड़कर उसमें चिपक जाते हैं। अब इसका पोषण गर्भाशय की रक्त वाहिकाओं के द्वारा होता है।
2. भ्रूणावस्था (The Period of Embryo) - यह गर्भकालीन विकास की दूसरी अवस्था है जो गर्भाधान के दूसरे सप्ताह से लेकर दूसरे माह के अन्त तक चलती है। गर्भकालीन विकास की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण अवस्था है। इस अवस्था के अन्त तक भ्रूण मानव आकृति प्राप्त कर लेता है। इस अवस्था में विकास की गति बहुत तीव्र होती है। जिससे भ्रूण के अन्दर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। शरीर के सभी प्रमुख अंगों का विकास इसी अवस्था में होता है। इस समय तक भ्रूण की लम्बाई सवा इंच से दो इंच तक भार लगभग 200 ग्राम हो जाता है। इस अवस्था में भ्रूण का स्वरूप नवजात शिशु के समान नहीं होता है। सिर का आकार अन्य अंगों की अपेक्षा बड़ा होता है, कान भी सिर से काफीनीचे प्रतीत होते हैं, नाक में भी केवल एक छिद्र होता है और माथा काफीचौड़ा दिखाई देता है।
3. गर्भस्थ शिशु अवस्था (The Period of Foetus) - गर्भकालीन विकास की तीसरी और आखिरी अवस्था 'गर्भस्थ शिशु की अवस्था' कहलाती है। यह तीसरे मास के प्रारम्भ से जन्म लेने के पूर्व तक होती है। यह अवस्था निर्माण की नहीं अपितु विकास की होती है क्योंकि भ्रूणावस्था में जिन अंगों का निर्माण हो गया होता है, उन्हीं अंगों का विकास इस अवस्था में होता है। इस अवस्था के प्रारम्भ होने से अन्त तक प्रत्येक मास गर्भस्थ शिशु का भार तथा लम्बाई में निररन्तर वृद्धि होती रहती है।
गर्भस्थ शिशु की अवस्थाओं का विकास सामान्यतः गर्भस्थ शिशु या भ्रूण का विकास 9 माह तक होता रहता है जिसे निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
1. तीसरे महीने से प्रत्येक महीने गर्भस्थ शिशु के भार तथा आकार में वृद्धि होती है। तीसरे माह के अन्त तक लम्बाई 6 सेमी तथा भार 3/4 औंस हो जाता है। हाथ तथा पैरों में उंगलियों का निर्माण होने लगता है तथा सम्पूर्ण शरीर पर पतली मुलायम गुलाबी रंग की त्वचा आ जाती है। गर्भ का पोषण अब गर्भनाल की बजाय नाभिरञ्जु द्वारा होने लगता है।
2. चौथे माह में भ्रूण 4 इंच लम्बा और 4 औंस भार का हो जाता है। इस समय उसके हाथ-पैर की उंगलियों में नाखून बन जाते हैं तथा कमर स्पष्ट हो जाती है और मसूड़ों के अन्दर विकास की प्रक्रि या प्रारम्भ हो जाती है। गर्भवती स्त्री के पेट का आकार पहले की अपेक्षा कुछ बड़ा हो जाता है।
3. पाँचवें माह में शिशु की लम्बाई 20 सेमी तथा भार 300 ग्राम हो जाता है। हृदय की धड़कन प्रारम्भ हो जाती है। माँसपेशियाँ सक्रिय हो जाती हैं जिससे शिशु की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है।
4. छठवें माह में त्वचा रोयेंदार हो जाती है तथा शरीर पर तरल पदार्थ एकत्रित होने लगता है। इस अवस्था में सिर का विकास भी तीव्र गति से होता है। सिर जो कि तीसरे माह के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का 1/3 भाग होता है वह अब छठवें माह के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का 1/2 भाग हो जाता है।
5. सातवें माह में शिशु माँ के पेट में स्थिर हो जाता है और जन्म लेने तक उसी स्थिति में पड़ा रहता है।
6. आठवें माह में शिशु का वजन 5 पौंड तथा लम्बाई 18 इन्च हो जाती है। त्वचा झुर्रीदार हो जाती है। सभी अस्थियाँ बनकर पूर्ण हो जाती है। हृदय, फेफड़े तथा नाड़ी मण्डल अनुपात में आ जाते हैं और अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं।
7. नवें माह में शिशु की त्वचा पर स्वाभाविक रंग आ जाता है। सिर पर घने बाल आ जाते हैं। इस समय से शिशु धीरे-धीरे गर्भाशय में नीचे की ओर खिसक ने लगता है और जन्म तक इसी स्थिति में रहता है। शिशु के जन्म के लिए 275 से 280 दिन की आवश्यकता होती है।
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- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
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- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
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- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
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- प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
- प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
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- प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
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- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
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- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?