बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
न्याय दर्शन में प्रमाण प्रमेय आदि तत्वों का विवेचन एवं ज्ञान निःश्रेयस प्राप्ति के निमित किया जाता है। यहाँ इस सन्दर्भ में तर्क एवं प्रमाण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान विस्तापूर्वक किया जाता है। इन समस्याओं का अध्ययन मोक्ष प्राप्ति के लिए ही होता है। इसी क्रम में न्याय दर्शन सोलह पदार्थों को स्वीकार करता है। ये 16 पदार्थ निम्नलिखित हैं
1. प्रमाण - जिस साधन द्वारा प्रमाता का प्रमेय से सम्बन्ध होता है उसे ही प्रमाण कहते है। ज्ञान के साधन को प्रमाण कहते हैं। न्याय दर्शन चार प्रमाणों प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान एवं शब्द को स्वीकार करता है।
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2. प्रमेय - जिस विषय को जाना जाता है उसे ही प्रमेय कहते हैं। जिस वस्तु का यथार्थ रूप में ज्ञान हो सके वही प्रमेय कहलाता है। यथार्थ ज्ञान का विषय ही प्रमेय है। प्रमेय हैं - आत्मा, शरीर, इन्द्रिय, अर्थ, बुद्धि, मन, प्रवृति, दोष, प्रेत्यभाव, फल, दुःख एवं अपवर्ग। ये सभी प्रमेय मोक्ष प्राप्ति के लिए अनिवार्य हैं।
3. संशय - किसी एक ही वस्तु के सम्बन्ध में जब परस्पर विरोधी अनेक विकल्प उपस्थित होते हैं तथा उस वस्तु का निश्चयात्मक ज्ञान नहीं हो पाता है तो इस स्थिति को संशय कहते है। यह मन की अनिश्चित अवस्था है। यहाँ विषय के विशेष का ज्ञान नहीं हो पाता है। यह न तो निश्चित ज्ञान है और न ही यहाँ ज्ञान का पूर्ण अभाव पाया जाता है। यह भ्रम या विपर्यय भी नहीं है।
4. प्रयोजन जिससे कार्य में प्रवृत्ति होती है, वही प्रयोजन है। इच्छापूर्वक सम्पादित कार्य का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य रहता है। किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए कार्य करना ही प्रयोजन है। कार्य या तो कुछ प्राप्त करने के लिए या किसी चीज से विमुक्ति के लिए किया जाता है, यही प्रयोजन के दो रूप न
5. दृष्टान्त जिसे देखने से किसी बात का निश्चय हो जाए उसे दृष्टान्त कहते हैं। वाद विवाद में अपनी बात या अपने पक्ष को प्रमाणित करने के लिए इसकी सहायता ली जाती है। दृष्टान्त को निश्चित एवं असंदिग्ध होना चाहिए। -
6. सिद्धान्त जिसके माध्यम से किसी विवाद का अन्त होकर विषय की सिद्धि होती है, उसे ही सिद्धान्त कहते हैं। प्रमाण के आधार पर जब कोई विषय अन्तिम रूप से स्थापित हो जाता है तो वही सिद्धान्त कहलाता है। सिद्धान्त के चार प्रकार हैं- सर्वतन्त्र, प्रतितन्त्र अधिकरण एवं अभ्युपगम | सर्वसम्मत सिद्धान्त सर्वतन्त्र है। -
7. अवयव अनुमान के वाक्यों को ही अवयव कहते हैं। न्याय दर्शन में अनुमान के पाँच अवयवों को स्वीकार किया गया है, जो वाक्य अनुमान का अंग नहीं होता है उसे अवयव नहीं कहते हैं।
8. तर्क - तर्क एक प्रकार की काल्पनिक युक्ति को कहते हैं जिसके आधार पर विपक्षी के कथन को दोषपूर्ण प्रमाणित किया जाता है। तर्क के आधार पर किसी सिद्धान्त को प्रबल समर्थन प्राप्त होता है। नैयायिकों ने तर्क को स्वतन्त्र प्रमाण नहीं माना है क्योंकि यह प्रमाण का केवल सहायक है, स्वतन्त्र कारण नहीं है।
9. निर्णय किसी विषय के बारे में उत्पन्न संशय के दूर हो जाने पर जिस निष्कर्ष एवं निश्चय पर पहुंचा जाता है उसे ही निर्णय कहते हैं। संशय के समय दो विरोधी विकल्प मौजूद रहते हैं। किसी निर्णायक अवयव के द्वारा जब उस संशय का निराकरण हो जाता है तो यही स्थिति निर्णय की स्थिति है।
10. वाद उस विस्तृत विचार को वाद कहते हैं जिसमें सर्वप्रमाणों एवं तर्क की सहायता से तथा पंचावयव के द्वारा विपक्ष का खण्डन करके अपने पक्ष का समर्थन किया जाता है। यहाँ पर अन्तिम निर्णय किसी सर्वमान्य स्वीकृत सिद्धान्त के विरूद्ध नहीं होता है। वाद के द्वारा वादी एवं प्रतिवादी दोनों ही अपने - अपने मतों की पुष्टि करते हैं तथा उसे प्रमाणिक बनाते हैं। वाद से अन्य मतों का खण्डन भी होता है। वाद के आधार पर वादी एवं प्रतिवादी का उद्देश्य यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति करना होता है।
11. जल्प जीतने की इच्छा से किया जाने वाला शास्त्रार्थ ही जल्प कहलाता है। जल्प का उद्देश्य यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना नहीं होता है बल्कि प्रतिवादी को परास्त करना ही इसका एक मात्र उद्देश्य होता है। जल्प में तर्क, प्रमाण हेत्वाभास, छल, जाति इत्यादि दुष्ट युक्तियों का भी सहारा लिया जाता है। यहाँ सत्य प्राप्ति की इच्छा का अभाव पाया जाता है।
12. वितण्डा जब जल्प करने वाला व्यक्ति अपने पक्ष की स्थापना नहीं करके केवल प्रतिपक्षी का खण्डन ही करता है तब ऐसे जल्प को वितण्डा कहते हैं। ध्वंसात्मक जल्प ही वितण्डा है। यहाँ केवल विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रतिपक्षी के मत का खण्डन किया जाता है।
13. हेत्वाभास अनुमान में होने वाले वास्तविक दोष को ही हेत्वाभास कहते हैं। हेत्वाभास का शाब्दिक अर्थ है हेतु का अभास होना। यहाँ जो वास्तविक हेतु नही है वह वास्तविक के समान प्रतीत होता है। वास्तविक हेतु की विशेषता साधकता है, परन्तु जिसमें साध्य को प्रमाणित करने का सामर्थ्य न हो उसे ही हेत्वाभास कहा गया है। अनुमान में होने वाले एकमात्र कारण गलत हेतु या हेत्वाभास हैं। हेत्वाभास के भेद हैं सत्यभिचार, विरूद्व, सत्प्रतिपक्ष, असिद्ध एवं बाधित।
14. छल वक्ता की कही हुई बात का अर्थ परिवर्तित कर उसमें दोष का अवलोकन कराना ही छल है। विवाद में एक ही शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं तथा विवाद क्रम में अर्थ विशेष का ही प्रयोग किया जाता है, परन्तु प्रतिवादी उस विशेष अर्थ का परित्याग कर उसके प्रसंग को बदलने के लिए जब दूसरे अर्थ की कल्पना कर लेता है तो उसे ही छल कहते हैं। छल तीन प्रकार के हैं वाक् छल, समान्य छल एवं उपचार छल।
15. जाति केवल समानता एवं असमानता के आधार पर दोष दिखलाना ही जाति है। यदि कोई वादी की दोषरहित युक्ति का खण्डन केवल किसी भी प्रकार की समानता या असमानता पर आधारित अनुमान के द्वारा करता है तो उस अनुमान को ही जाति कहा जाता है। यहाँ व्याप्ति सम्बन्ध की स्थापना नहीं की जाती है। समानता एवं असमानता के आधार पर ही दोष बतलाया जाता है।
16. निग्रह स्थान इसका शाब्दिक अर्थ है पराजय का स्थान | वाद विवाद में जब वादी ऐसे स्थान पर पहुंच जाता है जहाँ उसे अपनी हार स्वीकार करनी पड़ती है तो उसे निग्रह स्थान कहते हैं। इसका कारण अज्ञान एवं गलत ज्ञान है। यहाँ वादी या तो अपने विषय का प्रतिपादन नहीं कर पाता है या अनुचित रूप से विषय का प्रतिपादन करता है, उसे ही निग्रह स्थान कहते हैं। न्याय दर्शन वस्तुवादी दर्शन है। यह वस्तुओं के स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार करता है। वस्तुओं का अस्तित्व मन या ज्ञाता से सर्वथा स्वतन्त्र रहता है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
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- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
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- प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
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- प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
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- प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
- प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
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- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
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- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
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- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
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- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?