बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- महाकवि भारवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्य प्रतिभा का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारवि के काव्य-सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
महाकवि भारवि का परिचय
महाकवि भारवि अलंकृत काव्यशैली के प्रवर्तक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। इनका स्थितिकाल 600 ई0 के लगभग माना गया है। ये दक्षिण देश के निवासी थे। इन्होंने चालुक्यवंशीय राजा विष्णुवर्द्धन की सभा को अलंकृत किया था। महाकवि भारवि अपनी एकमात्र कृति किरातार्जुनीय के द्वारा अत्यधिक प्रसिद्ध हुए हैं। किरातार्जुनीय महाकाव्य को बृहत्त्रयी के अन्तर्गत स्थान प्राप्त हुआ है। किरातार्जुनीय महाकाव्य में 18 सर्ग हैं। इसका कथानक महाभारत से लिया गया है। अनेक स्थलों पर कवि की मौलिक कल्पना दृष्टिगोचर होती है। काव्य शैली के सम्बन्ध में महाकवि भारवि स्वयं इस प्रकार लिखते हैं-
स्फुटता न पदैरपाकृता न च न स्वीकृतमर्थगौरवम्।
रचिता पृथगर्थता गिरा न च सामर्थ्यमपोहितं क्वचित्॥
अर्थात् काव्य की पदयोजना में स्पष्टता, अर्थगौरव का निर्वाह, अर्थ में पुनरुक्त्यभाव और वाक्यों में इष्ट अर्थ प्रकट होने की शक्ति होनी चाहिए।
किरातार्जुनीय महाकाव्य का अङ्गीरस वीर है। कवि ने भीम और अर्जुन की उक्तियों के द्वारा वीर रस की व्यञ्जना करवाई है। स्त्री पात्र होते हुए भी द्रौपदी युधिष्ठिर को वीर रस से सने हुए वाक्यों के द्वारा युद्ध के लिए प्रेरित करती है। भीम के इस कथन को देखें -
द्विरदानिव दिग्विभावितांश्तुरस्तोयनिधीनिवायतः।
प्रसहेत रणं तवानुजान् द्विषतां कः शतमन्युतेजसः।
शत्रुओं में ऐसा कौन है, जोकि दिगन्तों में विख्यात दिग्गजों और चारों समुद्रों की भाँति विस्तृत युद्धस्थल की ओर प्रस्थान करते हुए इन्द्र के समान पराक्रमी आपके चार कनिष्ठ आताओं के पराक्रम को सहन कर सके।
श्रृंगार रस की व्यञ्जना में भी कवि को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित पद्य का अवलोकन करें
लोलदृष्टिवदनं दयितायाश्चुम्बति प्रियतमे रभसेन।
ब्रीडया सह विनिविनितम्बादैशुकं शिथिलतामुपपेदे॥
चञ्चल दृष्टि वाली प्रियतमा के मुख का प्रियतम के द्वारा बलपूर्वक चुम्बन कर लेने पर नीवी (वस्त्र ग्रन्थि) के खुल जाने से लज्जा के साथ-साथ अधोवस्त्र भी नितम्ब से खिसक गया (चुम्बन के कारण कामोन्मत्त होने से कामिनी के नितम्ब से वस्त्र तो खिसक ही गया, साथ ही भारी सुलभ लज्जा भी जाती रही)। कवि राजनैतिक सत्य के निरूपण मे सिद्धहस्त है। निम्नलिखित पद्य में कवि ने राजनैतिक सत्य का उदघाटन किया है
ब्रजन्ति ते मूढधियः पराभवं
भवन्ति मायाविषु ये न मायिनः।
प्रविश्य हि ध्नन्ति शठांस्तथाविधान्
असंवृतांगान् निशिता इवेषवः॥
निम्नलिखित पद्य में कवि ने गम्भीर अर्थ की व्यञ्जना की है -
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥
अर्थात् अकस्मात् अविवेकवश कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि अविवेक ही आपत्तियों का कारण है। सम्पत्ति एवं वैभव विवेकशील मानव को स्वतः प्राप्त हो जाते हैं।
भारवि का अर्थ-गौरव प्रख्यात है- "भारवेरर्थगौरवम्”।
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