बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र
प्रश्न- 73 वें संविधान संशोधन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा संविधान में एक नया भाग, भाग 9 तथा 16 अनुच्छेद व एक नई अनुसूची 11 वीं अनुसूची जोड़ी गई है और पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। यह अधिनियम 25 अप्रैल 1993 से लागू हुआ है।
इस संविधान संशोधन के द्वारा वैदिक काल से चली आ रही पंचायत व्यवस्था देश में लगभग मृतप्राय हो चुकी थी, जिसे गाँधी जी, बलवन्त राय मेहता समिति, अशोक मेहता रिपोर्ट, जी. के राव. समिति, एल. एम. सिंघवी रिपोर्ट के प्रयासों ने नवजीवन दिया। जिसके फलस्वरूप 73 वाँ संविधान संशोधन विधेयक संयुक्त संसदीय समिति की जाँच के बाद पारित हुआ। 73 वॉ संविधान संशोधन से गाँधी जी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को एक नई दिशा मिली है। गाँधी जी हमेशा से गाँव की आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे। गाँव के लोग अपने संसाधनों पर निर्भर रह कर स्वयं अपना विकास करें, यही ग्राम स्वराज की सोच थी। 73 वें संविधान संशोधन के पीछे मूलधारण भी यही थी कि स्थानीय स्तर पर विकास की प्रक्रिया में जनसमुदाय की निर्णय स्तर पर भागीदारी हो। 73 वां संविधान संशोधन अधिनियम वास्तव मे एक मील का पत्थर है जिसके द्वारा आम जन को सुशासन में भागीदारी करने का सुनहरा मौका प्राप्त हुआ है। पंचायतों को मजबूत, अधिकार सम्पन्न व स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में स्थापित करने हेतु संविधान में 73 वां संशोधन अधिनियम एक क्रान्तिकारी कदम है।
73 वें संविधान संशोधन की विशेषताएँ - 73 वां संविधान संशोधन पंचायती राज से सम्बन्धित है. जिसमें पंचायत से सम्बन्धित व्यवस्था का पूर्ण विधान किया गया है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं.
1. निर्णय को विकेन्द्रीकृत करना तथा स्थानीय स्तर पर संवैधानिक एवं लोकतान्त्रिक प्रकिया शुरू करना।
2. स्थानीय स्तर पर पंचायत के माध्यम से निर्णय प्रक्रिया, विकास कार्यों व शासन में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
3. ग्राम विकास प्रक्रिया के नियोजन, क्रियान्वयन तथा निगरानी में गाँव के लोगो की सहभागिता सुनिश्चित करना व उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराना।
4. लम्बे समय से हासिये पर रहने वाले तबकों जैसे महिला, दलित एवं पिछड़ों को ग्राम विकास व निर्णय प्रक्रिया में शामिल करके उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ना।
5. स्थानीय स्तर पर लोगों की सहभागिता बढ़ाना व लोगों को अधिकार देना।
6. संविधान में ग्राम सभा को पंचायतीराज की आधारभूत इकाई के रूप में स्थान मिला है। इस अधिनियम में प्राथमिक स्तर पर गाँव सभा की व्यवस्था की गई है। प्रत्येक गाँव के सभी वयस्क नागरिकों से मिलकर बनने वाली सभा को ग्राम सभा का नाम दिया गया है। इस प्रकार यह ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय स्वशासन की प्रत्यक्ष लोकतन्त्रीय संस्था है। यह ग्राम सभा ग्राम के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग करती है और ऐसे कार्य करती है, जो समय-समय पर राज्य विधान मण्डल विधि बनाकर निश्चित करें।
ग्राम सभा को अपने सदस्यों में एक प्रधान और एक उप-प्रधान का चुनाव करने का अधिकार प्रदान किया गया है। निर्वाचित प्रधान का कार्यकाल 5 वर्ष और उप-प्रधान का कार्यकाल एक वर्ष निर्धारित किया गया है। ग्राम सभा की बैठकों की अध्यक्षता प्रधान द्वारा की जाती है। प्रधान के उपस्थित न रहने पर बैठक की अध्यक्षता उप-प्रधान द्वारा की जाती है। प्रधान तथा उप-प्रधान पद के चुनाव में 21 वर्ष की आयु का व्यक्ति ही खड़ा हो सकता है।
7. पंचायतों की त्रिस्तरीय व्यवस्था की गयी है ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, क्षेत्र स्तर (ब्लाक स्तर) पर क्षेत्र पंचायत, व जिला स्तर पर जिला पंचायत की व्यवस्था की गयी है, लेकिन जिन राज्यों या सद्यीय राज्य क्षेत्रों में जनसंख्या 20 लाख से कम है उन्हें स्वयं अपने सम्बन्ध में इस बात पर निर्णय लेना होगा कि मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत राज संस्था रखी जाए या नहीं।
8. प्रत्येक स्तर पर पंचायत के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा की जाने की व्यवस्था है, लेकिन क्षेत्र व जिला स्तर पर अध्यक्षों का चुनाव चुने हुए सदस्यों के द्वारा किये जाने की व्यवस्था है।
9. 73 वें संविधान संशोधन में ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित की व्यवस्था की गई है। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन-जातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में होगी। महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था पहली बार की गई है और अब ग्राम पंचायतों में कम-से-कम 30 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित है। अनुसूचित जातियों और जन-जातियों के लिए स्थानों की जो संख्या होगी, उनमें भी 30 प्रतिशत स्थान उन जातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था है।
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और स्त्रियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था ग्राम पंचायतो में अध्यक्ष पद (सरपंच) के लिए भी गई है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सम्बन्ध में अध्यक्ष पद के लिए उसी अनुपात में स्थान आरक्षित हैं। प्रत्येक खण्ड में ग्राम पंचायत के अध्यक्ष पद पर महिलाओं के लिए यह आरक्षण चक्रानुक्रम (By Rotation) से आबंटित किया जाएगा।
10. पंचायत राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष की व्यवस्था है यदि इसके पूर्व (पहले) भी उनका विघटन किया जा सकता है। यदि उस समय प्रवृत विधि के अधीन ऐसा उपबन्ध हो। किसी पंचायत के गठन के लिए चुनाव (क) पांच वर्ष की अवधि से पूर्व और (ख) विघटन की तिथि से 6 माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व करा लिया जाएगा।
11. 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा पंचायतों से सम्बन्धित सभी चुनावों के संचालन के लिए राज्य चुनाव आयोग को उत्तरदायी बनाया गया है।
12. 73 वे संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों को कर अधिरोपित करने की शक्ति प्रदान की गयी है। राज्य, विधि द्वारा किसी पंचायत को कर, शुल्क, पथकर आदि का उद्ग्रहण करने, उनका संग्रह करने और उन्हें विनियोजित करने के लिए प्राधिकृत कर सकता है।
13. इस अधिनियिम की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि अब प्रत्येक पांच वर्ष बाद राज्य स्तर पर एक वित्त आयोग का गठन होगा। यह वित्त आयोग राज्य सरकार और पंचायती राज संस्थाओं के बीच धन के बंटवारे के सम्बन्ध में सिफारिशें करेगा। आयोग यह भी तय करेगा कि राज्य के संचित कोष से पंचायतों को कितना धन दिया जाये। यह पंचायतों की वित्तीय स्थिति में सुधार के उपाय भी सुझाएगा। यह अपना प्रतिवेदन राज्य के राज्यपाल को देगा।
14. 73 वें संविधान संशोधन में निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों का हस्तक्षेप निषेध है। अधिनियम के सम्बन्ध में अनुच्छेद 329 में यह व्यवस्था की गयी है कि निर्वाचन की प्रक्रिया हो जाने पर न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते है। उसी प्रकार न्यायालयों को इस बात की अधिकारिता नहीं होगी कि वे अनुच्छेद 243 (ट) के अधीन निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या स्थानों के आबंटन से सम्बन्धित किसी विधि की विधि मान्यता की परीक्षा करें।
15. पंचायत में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए छः समितियों का गठन किया गया है. नियोजन एवं विकास समिति, शिक्षा समिति, निर्माण कार्य समिति, स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति, प्रशासनिक समिति, जल प्रबन्धन समिति। इन्हीं समितियों के माध्यम से कार्यक्रम नियोजन एवं क्रियान्वयन किया जाता है।
16. न्याय पंचायत की व्यवस्था की गई है। न्याय पंचायत का चुनाव सम्बन्धित ग्राम पंचायत करती है। न्याय पंचायत केवल ग्रामीणों के निम्न स्तर के दीवानी और फौजदारी विवादों को सुनती है न्याय पंचायत एक निश्चित धनराशि तक जुर्माना वसूल सकती है किन्तु कारावास का दण्ड नहीं दे सकती है।
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- प्रश्न- भारतीय संविधान के निर्माण की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रकृति स्वरूप की चर्चा करते हुए यह भी स्पष्ट कीजिए कि क्या इसे 'वकीलों का स्वर्ग' कहा जा सकता है?
- प्रश्न- क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि भारतीय संविधान 1935 के भारत शासन अधिनियम का वृहत् संस्करण है? स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- लिखित व निर्मित संविधान से अभिप्राय बताइए।
- प्रश्न- संविधान सभा को कार्य निष्पादन में किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- संविधान सभा के कार्यकरण की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट (1928) की प्रमुख सिफारिशें क्या थीं?
- प्रश्न- पं. नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव (1946) के महत्वपूर्ण प्रस्ताव क्या थे?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मौलिकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम 1935 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रारूप समिति' पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट- 1928 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना के स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
- प्रश्न- 73 वें संविधान संशोधन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- भारतीय संविधान की विशालता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में केन्द्र को शक्तिशाली क्यों बनाया गया?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संवैधानिक उपचारों का अधिकार पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बयालिसवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना में किये गये सुधारों को बताइये।
- प्रश्न- एकल नागरिकता क्या है?
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- प्रश्न- भारतीय संविधान के नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के स्वरूप और क्षेत्र का वर्णन कीजिये। भारतीयराजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- हमारे देश में नीति निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन कहाँ तक हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? विस्तारपूर्वक समझाइए।
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- प्रश्न- उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- अनुच्छेद 352 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 पर टिप्पणी लिखिये।
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- प्रश्न- राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्रधानमन्त्री के प्रभुत्व से वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालक के रूप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री और संसद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमन्त्री की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
- प्रश्न- राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की संरचना एवं लोकसभा का कार्यकाल बताते हुए इसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संसद में कानून निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार संक्षेप में बतायें।
- प्रश्न- राज्य सभा के पदाधिकारियों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा के क्या विशेषाधिकार हैं?
- प्रश्न- धन विधेयक एवं वित्त विधेयक के मध्य भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संसदीय व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की नियुक्ति एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकीय कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की भूमिका अथवा स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? उसकी राज्य के शासन में क्या भूमिका और स्थिति है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति, उसके अधिकार एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए एवं मन्त्रिपरिषद एवं विधानसभा के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल, मंत्रिपरिषद तथा मुख्यमंत्री के आपसी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'केन्द्रीय अभिकर्ता' के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राज्यपाल का निर्वाचन क्यों नहीं होता? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान के अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राज्य के राज्यपाल की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री / मन्त्री पद की पात्रता सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के 10 सितम्बर, 2000 के निर्णय की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मुख्यमंत्री चयन की राजनीति टिप्पणी कीजिए।
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- प्रश्न- विधान परिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार या शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- निर्वाचन विषयक आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।