बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर
प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
अथवा
दीर्घीकृत ध्यान किसे कहते हैं? दीर्घीकृत अवधान पर किन कारकों का प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
लघु प्रश्न
1. दीर्घीकृत ध्यान किसे कहते हैं?
2. दीर्घीकृत ध्यान किन कारको से प्रभावित होता है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
दीर्घीकृत अवधान या ध्यान या जिसे निगरानी भी कहा जाता है, ये एक ऐसी प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अधिक समय तक अपना ध्यान किसी उद्दीपक पर केन्द्रित किए रहता है तथा उस उद्दीपक के प्रति अधिक सतर्कता बनाए रखता है। दीर्घीकृत अवधान के अध्ययन में मनोवैज्ञानिकों की अभिरुचि तब उत्पन्न हुई जब उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रडार संचालको में अवधान से सम्बन्धित समस्याएँ उत्पन्न होते पायी। इन संचालकों को गौर से ध्यान देते हुए दुश्मन के आते हुए हवाईजहाज से रडार में उत्पन्न संकेतों की पहचान करनी होती थी। कुछ समय तक इस तरह के कार्य करने के बाद रडार संचालकों के निष्पादन में गिरावट आने लगी और वे दुश्मन के आते हुए हवाईजहाज से रडार में उत्पन्न संकेतों की पहचान करने में वे असफल होने लगे। इस तरह के प्रेक्षण से प्रेरित होकर दीर्घीकृत अवधान के प्रयोगात्मक अध्ययन का प्रयास प्रारम्भ किया गया और इस संदर्भ में पहला प्रयोगशाला प्रयोग मैकवर्थ (1950), द्वारा किया गया। इस प्रयोग में इन्होंने रडार के अनुरूप प्रदर्शन, जिसे घड़ी परीक्षण कहा गया, का उपयोग किया। प्रयोगों के परिणाम से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ, कि संकेत पहचान के कार्य निष्पादन में उत्पन्न कमी का कारण थकान नहीं हो सकता, क्योंकि इन प्रयोगों में कार्यभार बहुत ही हल्का था। ब्राडवेन्ट (1971), के अनुसार इन निगरानी कार्यों का सैद्धान्तिक महत्व यह है कि यह मनोवैज्ञानिकों को उन सभी कारकों का अध्ययन करने की प्रेरणा देता है जो दीर्घकालीन अवधान को प्रभावित करते हैं।
दीर्घकालीन अवधान के प्रयोगों से अवधान के बारे में कुछ रुचिकर तथ्य सामने आए हैं। दीर्घीकृत अवधान या निगरानी कार्य के स्वरूप से यह स्पष्ट हुआ है कि किसी बाह्य उद्दीपक पर ध्यान देना एक तीव्र क्रिया है, जिसमें काफी मानसिक प्रयास व्यक्ति को करना पड़ता है। इस मानसिक प्रयास का पूर्ण उपयोग तब तक नहीं होता है जब तक कि व्यक्ति एक खास ढंग से उत्तेजित नहीं हो जाता है। उद्दीपक पर अवधान देने के लिए आवश्यकता है कि व्यक्ति में दैहिक उत्तेजन का स्तर जैसे - विशेष शारीरिक मुद्रा, विशेष मासपेशियों में तनाव तथा सतत् सक्रिय एकाग्रता आदि विशेष स्तर बना हुआ हो, परन्तु निगरानी कार्य के दौरान जो घटना घटित होती है, उससे यह स्पष्ट है कि उत्तेजन के बढ़ते हुए स्तर से उत्तम निष्पादन नहीं हो पाता है। जैसे-जैसे उत्तेजना में वृद्धि होती है, अवधान किसी केन्द्रीय लक्ष्य पर केन्द्रित हो जाता है, परन्तु अन्य किसी दूसरी तरह की सूचनाओं की उपेक्षा हो जाती है, तो स्वभावतः निष्पादन में ह्रास हो जाता है। 1908 में यर्क्स तथा डोडसन ने उत्तेजन के स्तर तथा निष्पादन को एक विशेष नियम जिसे 'यर्क्स-डोडसन' नियम कहा जाता है, कि दीर्घीकृत अवधान या निगरानी कार्यों में निष्पादन उस समय सबसे उत्तम होता है, जब व्यक्ति में उत्तेजन का स्तर मध्यम होता है। बहुत कम तथा बहुत अधिक के उत्तेजन स्तर होने पर निष्पादन में ह्रास होता है।
दीर्घीकृत अवधान के निर्धारक
दीर्घीकृत अवधान के क्षेत्र में किए गए प्रयोगों से यह स्पष्ट हुआ है कि दीर्घीकृत अवधान पर कई तरह के कारकों का प्रभाव पड़ता है जो निम्नलिखित हैं
(1) संवेदी कारक - व्यक्ति का दीर्घीकृत अवधान इस बात से प्रभावित होता है कि उद्दीपक का स्वरूप क्या है? मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जब दीर्घीकृत अवधान कार्य में श्रवण संकेत की पहचान करनी होती है तो ऐसे कार्य का निष्पादन उस परिस्थिति से होता है, जब दीर्घीकृत अवधान कार्य में दृष्टि संकेत की पहचान करनी पड़ती है।
(2) संकेत या उद्दीपक उत्कृष्टता - मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि दीर्घीकृत अवधान पर उद्दीपक या संकेत की उत्कृष्टता का भी प्रभाव पड़ता है। संकेत की उत्कृष्टता के दो पहलुओं का अध्ययन किया गया है - संकेत की तीव्रता या विस्तार तथा संकेत की अवधि।
किसी संकेत या उद्दीपक पर अधिक देर तक ध्यान देने पर उसमें व्यक्ति विवेचित संकेत या उचित संकेत का ठीक-ठाक पहचान कर पायेगा कि नहीं, यह संकेत के विस्तार या तीव्रता तथा उसकी अवधि पर निर्भर करता है। दीर्घीकृत अवधान कार्य, विवेचित उद्दीपक की अवधि द्वारा भी प्रभावित होता है।
(3) पृष्ठभूमि घटना दर - कई मनोवैज्ञानिकों के अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि दीर्घीकृत अवधान पर उद्दीपक की पृष्ठभूमि घटना दर का भी प्रभाव पडता है। पृष्ठभूमि घटना से तात्पर्य वैसे घटना चक्र से होता है, जिसमे विवेचित उद्दीपक या संकेत जिसकी पहचान व्यक्ति को करनी होती है, एक तरह से छिपा होता है। जेटीसन तथा विकेट (1964) ने प्रयोग करके उसके परिणाम में देखा कि विवेचित उद्दीपक या संकेत की पहचान की प्रतिशत मंद घटना गति में तीव्र घटना गति की काफी अधिक थी। इस प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि दीर्घीकृत अवधान का गुण पृष्ठभूमि या तुलना तदस्थ घटनाओं की उपस्थिति की दर से प्रतिलोभित रूप से सम्बन्धित होता है।
(4) सामयिक एवं स्थानिक अनिश्चितता - उपरोक्त तीन मनोदैहिक कारकों को जिनसे दीर्घीकृत अवधान प्रभावित होता है, उन्हें प्रथम क्रम का कारक कहा जाता है, क्योंकि इनमें उद्दीपक के कुछ तात्कालिक भौतिक गुणों में जोड़-तोड़ किया जाता है। इस प्रथम-क्रम कारक के अलावा कुछ द्वितीय क्रम के कारक भी हैं. जिनसे दीर्घीकृत अवधान प्रभावित होता है। इसमें एक प्रधान कारक है - प्रत्यक्षणकर्त्ता या प्रयोज्य के मन में इस बात की अनिश्चितता कि संकेत या उद्दीपक जिसकी पहचान की जानी है, कब और कहाँ-कहाँ उपस्थित होगा। पहले कारक को सामयिक अनिश्चितता तथा दूसरे तरह के कारक को स्थानिक अनिश्चितता कहा जाता है।
(5) परिणाम ज्ञान - परिणाम ज्ञान का भी प्रभाव दीर्घीकृत अवधान पर पड़ता है। मैकवर्थ (1940) द्वारा इस क्षेत्र में किए गए आरम्भिक प्रयोगों में यह देखा गया कि परिणाम ज्ञान देने से अर्थात् निगरानी या दीर्घीकृत अवधान कार्य के निष्पादन के बारे में यह देखा गया कि परिणाम ज्ञान देने से संकेतों की सही पहचान की आवृत्ति में वृद्धि हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों एवं उनके सहयोगियों ने परिणाम के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि की है, कि परिणाम ज्ञान देने से निगरानी कार्य मे उद्दीपक या संकेत के सही-सही पहचान की आवृत्ति तथा गति दोनों में वृद्धि हो जाती है। परिणाम ज्ञान देने से संकेत के सही-सही पहचान की आवृत्ति तथा गति में वृद्धि का कारण बतलाते हुए मनोवैज्ञानिको ने यह कहा है कि इससे प्रयोज्यों को यह अभिप्रेरणा मिलती है और यह अगले प्रयासों में अपने आपको आवश्यकतानुसार अधिक सतर्क कर लेता है, जिससे संकेत की सही पहचान में कुछ विशेष सहयता मिल जाती है।
स्पष्ट हुआ कि दीर्घीकृत अवधान के कई निर्धारक हैं। ये सभी निर्धारकों का स्वरूप मनोदैहिक है। इसलिए इन्हें मनोदैहिक निर्धारक भी कहा जाता है।
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- प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
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- प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
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- प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
- प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
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- प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
- प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
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- प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
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