बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र
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मानव एवं पशु समाज
(Human and Animal Society)
प्रश्न- मानव तथा पशु समाज की परिभाषा दीजिए एवं इनकी विशेषताएँ बताइये।
उत्तर-
समाज का अर्थ एवं परिभाषा
समाज हमारे लिए कोई नया शब्द नहीं है। इस शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में प्रायः मनमाने ढंग से किया जाता है। समाजशास्त्र में समाज का अधिक महत्व होने के कारण समाजशास्त्रियों ने इसके अर्थ को निश्चित व सीमित किया तथा इसे वैज्ञानिक रूप प्रदान किया है।
समाज मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है। सच तो यह है कि पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों आदि मनुष्येत्तर प्राणियों में भी समाज पाया जाता है किन्तु यह समाज सरल व अविकसित होता है। अमरीकन समाजशास्त्री मैकाइवर ने तो यहाँ तक लिखा है कि 'जहाँ कहीं जीवन है वहाँ समाज है। उन्हीं के शब्दों मे -
समाज शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। बोलचाल में समाज शब्द का प्रयोग समूह के अर्थ में किया जाता है जैसे महिला समाज, विद्यार्थी समाज, शिक्षक समाज, पिछडा समाज आदि। किन्तु समाजशास्त्री समाज का प्रयोग इससे बिल्कुल भिन्न अर्थों में करते हैं। उनके लिए समाज मानव समूह न होकर मिलने वाले सम्बन्धों का योग है।
अनेक समाजशास्त्रियों ने समाज के अर्थ को स्पष्ट किया है। उनमें से कुछ प्रचलित परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं- मैकाइवर व पेज ने 'समाज को सामाजिक सम्बन्धों का जाल बताया है। उन्हीं के शब्दों में -
इन्हीं समाजशास्त्रियों ने समाज की कुछ विस्तार से वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए लिखा है 'समाज रीति-रिवाजों, कार्यप्रणालियों, अधिकार व पारस्परिक सहायता, अनेक समूहों व विभाजनों तथा मानव-व्यवहार के नियंत्रण व स्वाधीनताओं की व्यवस्था है। उन्हीं के शब्दों में -
गिडिंग्स ने समाज का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है - "समाज एक संघ है. संगठन है तथा औपचारिक सम्बन्धों का योग है जिसमें सहयोगी व्यक्ति परस्पर बंधे होते हैं।' उन्हीं के शब्दों में
राइट की समाज की परिभाषा सरल व संक्षिप्त है। वह लिखता है कि "समाज मानव समूह नहीं, वह तो उन सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था है जो समूह के बीच मिलते हैं।"
लैपियर ने समाज की व्याख्या करते हुए लिखा है - "समाज शब्द से तात्पर्य मानव समूह से नही वरन् अन्तः क्रिया के आदर्श रूपों की जटिल व्यवस्था से है, जो उनमें तथा उनके बीच उत्पन्न होते हैं।'
समाज की उपरोक्त व्याख्याओं का विश्लेषण करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि समाजशास्त्र में समाज व्यक्तियों का समूह न होकर उनमें पाये जाने वाले सम्बन्धों की जटिल व्यवस्था है। अतः समाज अमूर्त धारणा हुई, क्योंकि संबंधों को केवल अनुभव किया जाता है। हम न उन्हें देख सकते हैं और न ही छू सकते हैं। सामाजिक सम्बन्ध समाज के आधार हैं। उनका निर्माण व विकास पारस्परिक जागरूकता व आदान-प्रदान के कारण होता है। इस प्रकार सामाजिक संबंधों के लिए मानसिक तत्व अनिवार्य है। समाज का क्षेत्र व्यापक है। उसकी कोई भौगोलिक सीमायें नहीं है। संसार में जहाँ कहीं भी मनुष्य हैं उनके सामाजिक संबंध समाज के अंतर्गत आते हैं। अन्त में यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्रीय दृष्टि से समाज के लिए मानव संग्रह अथवा उनकी समीपता पर्याप्त नहीं वरन् समाज तो सामाजिक सम्बन्धों का योग है। समाज का जीवन में बड़ा महत्व है। समाज के बिना हमारा जीवित रहना दूभर है और किसी तरह यदि हम जीवित भी रहें तो मानवोचित गुणों का विकास समाज के बिना सम्भव नहीं।
समाज की मुख्य विशेषताएँ
समाज की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. समाज मनुष्यों- तक सीमित नहीं कुछ लोग यह मानते हैं कि समाज मनुष्यों में ही मिलता है। ऐसा सोचना उचित नहीं है। समाज के दर्शन केवल मनुष्यों में ही नहीं होते किन्तु अन्य प्राणियों जैसे - चींटी, मधुमक्खी, हाथी, गिलन, गुरिल्ला, औरगटान में समाज की विशेषताएँ मिलती हैं। इसमें संगठन और व्यवस्था भी मिलते हैं। इन प्राणियों में जागरूकता यंत्रवत होती है। अनुभव और विचार शक्ति की कमी होती है। इनमें संस्कृति नहीं मिलती। अतः मनुष्येत्तर प्राणियों में समाज का विकास नहीं हो पाया। इस. सम्बन्ध में प्रो. राइट ने लिखा है कि - "यह (समाज) व्यक्तियों का समूह नहीं है, वरन् यह समूह के सदस्यों के मध्य स्थापित सम्बन्धों की व्यवस्था है।"
2. समाज में समानता - समानता समाज के निर्माण का एक प्रमुख तत्व है। मानसिक व शारीरिक समानता के बिना सामाजिक सम्बन्ध स्थापित नहीं होते। यही कारण है कि मानव समाज मनुष्यों द्वारा ही निर्मित होता है। मनुष्य व वृक्षों अथवा पशुओं में समाज का निर्माण नहीं होता, क्योंकि उनमें उद्देश्यों, रुचियों व हितों की कोई समानता नहीं मिलती। यदि मनुष्यों का शारीरिक ढाँचा समान न होता तो उनके उद्देश्य व जरूरतें भी समान न होती और न लोग सहयोग से काम करते। समानता से हममें चेतना व अपनत्व का भाव उत्पन्न होता है। इसे गिडिंग्स 'सजातीय चेतना' और कूले 'हम की भावना' की संज्ञा देते हैं तथा समाज का आधार मानते हैं। इस सम्बन्ध में मैकाइवर तथा पेज ने लिखा है कि- "समानता और असमानता की भावना के अभाव में 'साथ होने की भावना की पारस्परिक मान्यता नहीं हो सकती, अतः वहाँ समाज का अस्तित्व सम्भव नहीं है। समाज का अस्तित्व उन्हीं लोगों में होता है जो एक-दूसरे से शारीरिक एवं मानसिक रूप से समान हैं और इस तथ्य को जानने के लिए पर्याप्त निकट या बुद्धिमान है।"
3. समाज में असमानता - जिस प्रकार समाज में समानता का महत्व है उसी प्रकार भिन्नता भी आवश्यक है। भिन्नता स्वयं तो समाज का निर्माण नहीं करती किन्तु उसके निर्माण में समानता के साथ अत्यधिक सहयोग कर सकती है। मित्रता के अभाव में समाज पिछडा व अविकसित ही रहता है। यदि सभी मनुष्य शारीरिक व मानसिक दृष्टि से शत-प्रतिशत समान होते तो सामाजिक सम्बन्ध अविकसित व सीमित होते। मानव समाज चीटियों व मधुमक्खियों से भिन्न न होता। इसी तरह यदि समाज में केवल पुरुष ही होते तो जीवन नीरस व उत्साहहीन होता। समाज की निरन्तरता खतरे में पडती क्योंकि निरन्तरता का आधार प्राणिशास्त्रीय भिन्नता है। पारस्परिक निर्भरता व आदान-प्रदान का आधार भिन्नता भी है। भिन्नता के कारण अनेक हैं, जैसे - उम्र योग्यता, रुचि, कार्य व स्वास्थ्य आदि। भिन्नता के कारण ही श्रम-विभाजन आवश्यक होता है। यही श्रम-विभाजन सभ्यता का आधार होता है। मैकाइवर व पेज इसे 'सभ्यता का घातांक' मानते हैं। अर्थात् श्रम विभाजन जितना अधिक होगा सभ्यता भी उतनी ही उत्पन्न होगी।
4. पारस्परिक जागरूकता- सम्बन्धों को प्रायः दो भागों में बांटा जाता है- (i) भौतिक एवं (ii) सामाजिक। भौतिक सम्बन्धों की कसौटी यह है कि उनमें पारस्परिक जागरूकता नहीं मिलती। ऐसे सम्बन्ध दीवार व छत से लटकते हुए पंखे में, दीवार व श्यामपट तथा निकट रखी मेज-कुर्सी में मिलते हैं। ये वस्तुयें न तो दूसरे की उपस्थिति के प्रति जागरूक हैं और न कोई प्रतिक्रिया ही करती हैं अतः इनमें सम्बन्ध भौतिक हुए। इसके विपरीत माता-पुत्र, दो मित्रों, भाई-बहिन, प्रोफेसर व छात्र के सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों के अन्तर्गत आते हैं। प्रोफेसर जब कक्षा में भाषण देते हैं तब प्रोफेसर छात्र की उपस्थिति से तो प्रभावित होते ही हैं साथ ही छात्र भी अनुकूल या प्रतिकूल प्रतिक्रिया करते हैं। यही पारस्परिक जागरूकता या मानसिक तत्व है जिनके बिना सम्बन्ध सामाजिक नही होते जैसे - रेल के डिब्बे में सफर करते हुये यात्री, मेले या बाजार में घूमते हुए लोग पारस्परिक जागरूकता के अभाव में सामाजिक सम्बन्ध नही बनाते। के. डेविस ने लिखा है कि "समाज सामाजिक सम्बन्धों पर तथा सामाजिक सम्बन्ध पारस्परिक ज्ञान व सामाजिक स्वीकृति पर आधारित है।
5. सहयोग एवं संघर्ष - सहयोग व संघर्ष दोनों ही समाज के अनिवार्य पहलू हैं। एक ओर समाज में प्रेम व सहयोग मिलता है तो दूसरी ओर घृणा, द्वेष व शत्रुता भी पायी जाती है। सच तो यह कि सहयोग व संघर्ष भिन्न न होकर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कूले इन्हें एक प्रक्रिया के है। प्रायः सहयोग का अन्त संघर्ष और संघर्ष का अन्त सहयोग में होता है। पहलू कहते
6. अन्तः निर्भरता - समाज का मूल आधार अन्तः निर्भरता है। हम स्वयं अपूर्ण हैं अतः हमें दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है। समाज की प्रगति के साथ सहयोग को क्षेत्र बढ़ता है, व अन्त निर्भरता के रूपों में वृद्धि होती है। आदिवासी समाज आत्मनिर्भर थे किन्तु आज के जटिल समाज में आत्मनिर्भरता स्वप्न या आदर्श ही है, वास्तविकता नहीं। यदि हम अपनी वस्तुओं पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हम थोड़ी ही बातों में आत्मनिर्भर हैं। अधिकांश बातों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना आवश्यक है। यदि हम लोग आत्मनिर्भर होते तो आदान-प्रदान न होता और न ही सामाजिक सम्बन्ध पनपते। ऐसी स्थिति में समाज का विकास ही न होता। संक्षेप में अन्तः निर्भरता समाज के जन्म व विकास के लिए आवश्यक है।
7. समाज और जीवन - समाज और जीवन में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात् जहाँ जीवन है वहाँ समाज है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समाज का सम्बन्ध जीवित प्राणियों से होता है न कि निर्जीव प्राणियों से। वैसे पशु और पक्षियों का भी समाज होता है, परन्तु समाजशास्त्र का सम्बन्ध केवल मानव समाज से ही होता है। मनुष्य समाज का स्तर पशु समाज के स्तर से अधिक ऊँचा होता है।
8. निरन्तर परिवर्तनशीलता - समाज एवं उसके सदस्यों में व्याप्त सम्बन्धों की व्यवस्था परिवर्तनशील है न कि स्थिर। समाज में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। मैकाइवर तथा पेज ने सामाजिक सम्बन्धों की सदैव परिवर्तित होने वाली जटिल व्यवस्था को ही समाज कहा है। इनके शब्दों में यह सामाजिक सम्बन्धों का जाल है तथा सदैव परिवर्तित होता रहता है।
पशु समाज का अर्थ
समाज का सम्बन्ध समस्त प्राणियों से होता है न केवल मानव से। अर्थात् जहाँ जीवन होता है वही समाज होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समाज केवल मानव का ही नहीं होता है बल्कि पशुओं का भी समाज होता है, लेकिन समाज के लिए सामाजिक सम्बन्धों का होना अनिवार्य है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी स्थान पर कुछ अजनबी एवं अपरिचित व्यक्ति एक साथ खड़े है तो उन्हें समाज की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। उन्हें समाज की संज्ञा तभी दी जा सकती है जब उनमें किसी प्रकार का सम्बन्ध स्थापित हो। यही कारण है कि समाज को सामाजिक सम्बन्धों का जाल कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जहाँ भी सामाजिक सम्बन्ध पाये जाते हैं वही समाज की सम्भावना होती है। पशुओं में भी सामाजिक सम्बन्ध पाये जाते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए अनेक पशुओं में भी समाज के संगठन को स्वीकार किया जा सकता है।
पशु समाज की विशेषताएँ -
पशु-समाज की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) पशु-समाज में संस्कृति का अभाव पाया जाता है।
(ii) पशु-समाज के सदस्य अपने पैर पर सीधे खड़े हो नहीं पाते हैं।
(iii) पशु-समाज कीट, पतंगों या पशुओं का समूह पाया जाता है। (iv) इनका मस्तिष्क विकसित नहीं होता है।
(v) पशु-समाज प्रगति नहीं कर सकता है।
(vi) इनके यौन-सम्बन्ध अस्थायी और स्वच्छन्द होते हैं।
(vii) इनमें सामाजिक स्तरीकरण का अभाव भी पाया जाता है।
(viii) ये अपने विचार दूसरों से संकेत द्वारा कहते हैं।
(ix) ये व्यवहार सीखते नहीं हैं और इनका व्यवहार आनुवंशिकता पर निर्भर करता है।
(x) ये सामाजिक नियन्त्रण से प्रायः वंचित रहते हैं।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास क्रम का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अध्ययन की सुविधा के लिये समाजशास्त्र के विकास क्रम को कितने काल खण्डों में विभाजित किया गया है?
- प्रश्न- प्राचीनकाल से 13वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध तक तथा प्राचीनकाल से लेकर 13वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध तक समाजशास्त्र के विकास क्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 13वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध से लेकर 18वी शताब्दी तक, समाजशास्त्र के विकास क्रम को बताइए।
- प्रश्न- 19वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध से लेकर वर्तमान काल तक, समाजशास्त्र के विकास-क्रम को बताइये तथा प्रमुख समाजशास्त्रियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत में समाजशास्त्र के विकास' पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- स्वतंत्र भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रमुख विचारधाराओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का अतीत बहुत लम्बा है, किन्तु इतिहास संक्षिप्त। बीरस्टीट के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का अतीत बहुत लम्बा है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का इतिहास संक्षिप्त है।' विवेचित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए। अथवा स्पष्ट कीजिए समाजशास्त्र क्या है?
- प्रश्न- क्या समाजशास्त्र अन्य विज्ञानों की तुलना में नया विज्ञान है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न - समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये। अथवा समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की उपयोगिता अथवा महत्ता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए। अथवा समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति क्या है?
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु (Subject matter) या अध्ययन विषय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में दुखींम के विचारों को बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में गिन्सबर्ग के क्या विचार थे?
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विषय-वस्तु के सम्बन्ध में सारोकिन के विचारों को बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु सामाजिक सम्बन्ध है। बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों के सन्दर्भ में समाजशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की परिभाषा दीजिए और उसका विषय-क्षेत्र निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के सम्बन्ध में दो सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- स्वरूपात्मक सम्प्रदाय की विशेषताएँ क्या हैं? बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का समन्वयात्मक दृष्टिकोण बताइये।
- प्रश्न- समन्वयात्मक सम्प्रदाय की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक सम्प्रदाय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की प्रकृति कैसी है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध में किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "जहाँ जीवन है, वहाँ समाज है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र के मानविकी परिप्रेक्ष्य की विशेषता क्या है?
- प्रश्न- समन्वयात्मक सम्प्रदाय क्या है?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और सामान्य बोध के संबंध में विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामान्य बोध की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य की व्याख्या करने हेतु इसकी विशेषताएँ लिखिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- संघर्षात्मक परिप्रेक्ष्य की अवधारणा दीजिये।
- प्रश्न- आगमन या निगमन परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- एक परिप्रेक्ष्य के रूप में समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- परिप्रेक्ष्य संबंधी अगस्त काम्टे के विचारों पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- परिप्रेक्ष्य संबंधी कार्ल मार्क्स और हरबर्ट स्पेन्सर के विचारों की तुलना कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के सम्बन्ध में इमाइल दुर्खीम और मैक्स वेवर के विचारों की समीक्षा करो।
- प्रश्न- समाजशास्त्र समाज सम्बन्धी ज्ञान में अभिवृद्धि करने, विशेषीकृत एवं जटिल समाज की समस्याओं का समाधान करने तथा सामाजिक अनुकूलन में किस प्रकार सहायक है? बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र सामाजिक संघर्षो को दूर करने, सुखी एवं सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक जीवन के निर्माण एवं व्यावसायिक क्षेत्र में किस प्रकार उपयोगी है? बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की भारतीय जनजीवन में क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय एवं सामान्य बोध में अंतर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- क्या समाजशास्त्र एक विज्ञान है? इसके विज्ञान मानने में क्या प्रमुख आपत्तियाँ की जाती हैं? आप इन आपत्तियों का निराकरण कैसे करेंगे?
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति के विरुद्ध कुछ आपत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- किसी विषय के वैज्ञानिक होने की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि 'समाजशास्त्र एक विज्ञान' है।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र विज्ञान नहीं बन सकता' उठायी जाने वाली प्रमुख आपत्तियाँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- "सामाजिक घटनायें जटिल और निरन्तर परिवर्तनशील प्रकृति की होती है।" मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञानिक तटस्थता सम्भव नहीं' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र के पास प्रयोगशाला का अभाव है' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक घटनाओं को मापने में कठिनाई होती है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र यथार्थ विज्ञान नहीं है' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'समाजशास्त्र भविष्यवाणी नहीं कर सकता' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन है।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रयोगशाला पद्धति का प्रयोग नहीं होता फिर यह विज्ञान किस प्रकार हो सकता है? तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विज्ञान के लिए प्रयोगशाला का होना आवश्यक है जबकि समाजशास्त्र में प्रयोगशाला का अभाव पाया जाता है फिर भी इसे विज्ञान माना जाता है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय अध्ययन में मानवीय उन्मुखता या दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय अध्ययन में मानवीय उन्मुखता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के अध्ययन में मानवीय दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों के विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- परिप्रेक्ष्य क्या है? समाजशास्त्र के मानवतावादी परिप्रेक्ष्य के विषय में विस्तार सहित लिखिए।
- प्रश्न- मानवीय उन्मुखता के अन्तर्गत सामाजिक यथार्थ के अध्ययन के प्रमुख उपागम बताइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के अभ्युदय में सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारणों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उदय की संक्षेप में समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवी शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमी समाज में समाजशास्त्र के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का मानवशास्त्र के साथ क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और इतिहास में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र में सम्बन्ध बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र का शिक्षाशास्त्र एवं अपराधशास्त्र से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- 'सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "समाजशास्त्र का प्रत्यक्ष सम्बन्ध समाज से है, जबकि अर्थशास्त्र के अर्थ से।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और इतिहास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज का अर्थ व प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए
- प्रश्न- समाज व एक समाज में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज की प्रकृति को संक्षेप में विवेचित कीजिए।
- प्रश्न- समाज की अमूर्त अवधारणा क्या है? समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों में पारस्परिक जागरूकता होती है। समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सम्बन्धों में समानता व भिन्नता दोनों ही पायी जाती है। समानता व भिन्नता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाज में समानता और भिन्नता पाई जाती है कैसे? समझाइये।
- प्रश्न- सहयोग व संघर्ष दोनों ही समाज के अनिवार्य हैं। सहयोग कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाज का मूल आधार अन्तःनिर्भरता है, कैसे? समझाइये।
- प्रश्न- समाज सामूहिक अन्तःक्रिया का फल है, किस प्रकार? बताइये।
- प्रश्न- समाज मनुष्यों तक सीमित नहीं है। संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- समुदाय से आप क्या समझते हैं? विवेचित कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- समुदाय की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या पड़ोस समुदाय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या जेल समुदाय है? स्पष्ट कीजिए
- प्रश्न- क्या राज्य समुदाय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या चर्च समुदाय है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय से आप क्या समझते हैं? क्या आपकी दृष्टि में पड़ोस, जेल, चर्च व राज्य समुदाय हैं?
- प्रश्न- सामुदायिक भावना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामुदायिक भावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक भावना में कौन-कौन से तत्व एवं मनोवृत्तियाँ अन्तर्निहित होती हैं?
- प्रश्न- आधुनिक समय में सामुदायिक भावना में क्या-क्या परिवर्तन हो रहा है?
- प्रश्न- समुदायों के प्रकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- समुदाय एवं समाज में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज की चार विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- समाज की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- समिति से आप क्या समझते हैं? समझाइये।
- प्रश्न- समिति को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- समिति की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समिति किसे कहते हैं? समिति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- संस्था को परिभाषित कीजिए ।
- प्रश्न- संस्था की उत्पत्ति किस तरह और कब हुई? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के संगठनात्मक कार्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के विघटनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्था के अर्थ व विकास को स्पष्ट कीजिए तथा उसके कार्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "हम समिति के सदस्य होते हैं, संस्था के नहीं।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "समिति समुदाय नहीं वरन् समुदाय के अन्तर्गत मिलने वाला संगठन है।" इस कथन की व्याख्या कीजिए तथा समिति व समुदाय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समिति समुदाय है या नहीं स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय एवं समिति में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- समिति और संस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समुदाय एवं संस्था में भेद बताइये।
- प्रश्न- क्या परिवार एक समिति है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्था की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- गिलिन एवं गिलिन द्वारा बतायी गयी संस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह को परिभाषित कीजिये। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक समूह से क्या तात्पर्य है? सामाजिक समूहों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह की अवधारणा का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक समूह का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह से क्या तात्पर्य है? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये। द्वैतीयक समूह से इसका अंतर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह को परिभाषित कीजिए। द्वैतीयक समूह से इसका अंतर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- प्राथमिक समूह की विशेषताएँ संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- प्राथमिक और द्वैतीयक समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राथमिक समूह की महत्ता को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सन्दर्भ-समूह की अवधारणा बताइये।
- प्रश्न- सन्दर्भ समूह से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सन्दर्भ समूह की विशेषताएँ एवं तत्वों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- द्वैतीयक समूह की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि द्वितीयक समूह सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से पूर्णतः प्रकार्यात्मक ही है। वास्तविकता यह है कि इनका अपकार्यात्मक पक्ष भी है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्वितीयक समूह के प्रकार्यात्मक एवं उपकार्यात्मक पक्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मर्टन की सन्दर्भ-समूह की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- अन्तःसमूह को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- बहिर्समूह को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- मानव तथा पशु समाज की परिभाषा दीजिए एवं इनकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सभी प्राणियों को कितने वर्गों में रखा गया है? इनके उप-विभागों को बताते हुए इनकी विशेषतायें लिखिए।
- प्रश्न- सभी प्राणियों को किन दो वर्गों में रखा गया है?
- प्रश्न- मानवेत्तर समाज के प्रमुख उप विभाग कौन-कौन से है? तथा कीट-पतंगों के समाज की विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- मानवेत्तर समाज के स्तनपाई समाज की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मानवेत्तर समाज के वानर समाज की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मानव समाज की प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मानव तथा पशु समाज में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- मानव समाज व पशु-समाज में भिन्नता का मूल कारण क्या है?
- प्रश्न- स्तनपाई समाज की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- पशुओं के नर-वानर समाज की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- परिवार की परिभाषा लिखिए। इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए एवं इसके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- परिवार को परिभाषित कीजिए। इसके विभिन्न प्रकारों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिवार से आप क्या समझते हैं? परिवार के प्रमुख प्रकारों को बताइये।
- प्रश्न- परिवार को परिभाषित कीजिए। इसके प्रकार्यो का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिवार के प्रकार्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- नातेदारी का अर्थ बतलाइये तथा नातेदारी की श्रेणियों एवं नियामक व्यवहार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी पर एक संक्षिप्त निबन्ध प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- परिहार और परिहास के विशेष संदर्भ में नातेदारी के नियामक व्यवहारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- परिवार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए तथा परिवार में होने वाले आधुनिक परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिवार की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- परिवार में होने वाले आधुनिक परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- “संयुक्त परिवार प्राचीन भारतीयता का स्वरूप है। " स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संयुक्त परिवार की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में संयुक्त परिवार पुनः महत्वपूर्ण हो रहे हैं क्यों? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी के प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी की विशेषताएँ बताइए ।
- प्रश्न- नातेदारी के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी की सामान्य आचरण प्रथाएँ कौन-सी हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी की रीतियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी के नियामक व्यवहार (रीतियों) की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- परिवार की अस्थिरता के लिए कौन से कारक उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- संयुक्त परिवार को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नातेदारी के सामाजिक महत्व की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- परिवार का समाजशास्त्रीय महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अधिकार के आधार पर परिवार के प्रकार बताइये?
- प्रश्न- नातेदारी पर संक्षिप्त मे टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- विवाह से आप क्या समझते हैं? विवाह की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विवाह से आप क्या समझते हैं?]
- प्रश्न- विवाह की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के उद्देश्य और प्रकारों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के प्रकार लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के उद्देश्य तथा स्वरूप क्या हैं?
- प्रश्न- विवाह के भेद बताइए।
- प्रश्न- विवाह के प्रमुख प्रकार बताइए।
- प्रश्न- विवाहों के प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दू समाजों में विवाह से सम्बन्धित निषेध बताइए।
- प्रश्न- भारतीय मुसलमानों में प्रचलित विवाह पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- ईसाई विवाह पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह के उद्देश्यों को समझाइये। अथवा विवाह के प्रमुख उद्देश्य बताइए। अथवा हिन्दू विवाह के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- 'प्राचीन काल में हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जाता था, किन्तु वर्तमान में हिन्दू विवाह स्त्री-पुरुष के बीच एक कानूनी समझौता बन गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन की व्याख्या कीजिए। आधुनिक अधिनियमों ने इसे कहाँ तक प्रभावित किया है?
- प्रश्न- "विवाह एक संस्कार है।' चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- 'मुस्लिम विवाह एक समझौता (संविदा) है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मुस्लिम विवाह एक समझौता है? इस कथन की पुष्टि मुस्लिम विवाह की विधियों एवं शर्तों से पूर्ण कीजिए।
- प्रश्न- विवाह से आप क्या समझते हैं। अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दू विवाह तथा विवाह विच्छेद अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ?
- प्रश्न- जनजातीय विवाह के प्रमुख प्रकार बताइए।
- प्रश्न- जनजातीय विवाह की प्रमुख समस्यायें क्या हैं?
- प्रश्न- हिन्दुओं व मुसलमानों में विवाह संस्थाओं की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- कितने प्रकार के विवाह भारतीय जनजातियों में प्रचलित हैं?
- प्रश्न- कुलीन विवाह के नियम लिखिए।
- प्रश्न- कुलीन विवाह के विषय में बताइए।
- प्रश्न- अनुलोम और प्रतिलोम विवाह के विषय में बताइए।
- प्रश्न- विवाह के प्रकार्य पर टिप्पणी कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा से सम्बन्धित कौन-कौन सी समस्याएँ हैं? शिक्षा व्यवस्था मंो सुधार के उपाय बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा से सम्बन्धित कौन-कौन सी समस्याएँ हैं?
- प्रश्न- शिक्षा व्यवस्था में सुधार के उपाय बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या होने चाहिए?
- प्रश्न- शारीरिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानसिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक एवं चारित्रिक विकास के उद्देश्य को समझाइए।
- प्रश्न- व्यावसायिक विकास के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शासनतंत्र एवं नागरिक की शिक्षा के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आध्यात्मिक चेतना के विकास का उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कुछ सुझाव दीजिए ताकि वह सामाजिक नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सके?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक नियंत्रण के अभिकरण के रूप में शिक्षा का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिक्षा के महत्व को बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का सामाजिक महत्व लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका को समझाइये।
- प्रश्न- राज्य की परिभाषा दीजिए। उसके विभिन्न तत्वों का वर्णन करते हुए राज्य का समाज व सरकार से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राज्य के प्रमुख तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- राज्य व सरकार में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- राज्य के प्रमुख उद्देश्यों को समझाइये।
- प्रश्न- राज्य का अर्थ लिखिये। सामाजिक नियन्त्रण में राज्य की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- राज्य के अनिवार्य कार्य संक्षिप्त रूप में बताइये।
- प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म के मौलिक लक्षण क्या है? समकालीन समाज में धर्म की सामाजिक उपयोगिता और अनुपयोगिता का विश्लेषणात्मक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक काल में धर्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म के अकार्यात्मक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्म के कोई चार भौतिक लक्षण बताइये।
- प्रश्न- धर्म में आधुनिक प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म के सामाजिक प्रकार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति को समझाइए।
- प्रश्न- संस्कृति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति को समझाइए।
- प्रश्न- 'सांस्कृतिक क्षेत्रों के भौतिक लक्षणों में सहभागिता' को समझाइए।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति विविधता में एकता की अभिव्यक्ति है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आगवर्न के संस्कृति पिछड़ के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सभ्यता को परिभाषित करते हुये सभ्यता की विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना का अर्थ संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- संस्कृति के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "मानव संस्कृति का निर्माता है" समझाइये।
- प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर लिखिये।
- प्रश्न- सभ्यता एवं संस्कृति में सम्बन्धों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद को परिभाषित करते हुये बहुलवाद के आधारों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- बहुलवाद के प्रमुख सिद्धांत बताते हुये बहुलवाद की मान्यताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बहुल संस्कृतिवाद की अवधारणा देते हुये इसकी विशेषताओं की विस्तार से विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक सापेक्षवाद के अर्थ को स्पष्ट कीजिये। किसी संस्कृति को दूसरी से श्रेष्ठ अथवा हीन क्यों नहीं कहा जा सकता?
- प्रश्न- सहयोग किसे कहते हैं? सहयोग के प्रकार या रूपों की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सहयोग की अन्तःक्रिया के लिये आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सहयोग की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक आवश्यकता को बताते हुये आगवर्न के वर्गीकरण को प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- प्रतिस्पर्धा को परिभाषित करते हुये, प्रतिस्पर्धा के प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- प्रतिस्पर्धा के परिणामों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- प्रतिस्पर्धा और संघर्ष में अंतर लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय समाज में पायी जाने वाली 'सांस्कृतिक' एवं 'संजातीय' विविधताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में पायी जाने वाली सांस्कृतिक विविधता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में पायी जाने वाली सजातीय (नृजातीय) विविधता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति संक्रमण को परिभाषित करते हुये इसके ऐतिहासिक दृष्टिकोण की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- "संस्कृति और संक्रमण'' नामक ग्रंथ पर एक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- आत्मसात्करण अथवा मिलना की प्रक्रिया की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकीकरण की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- एकीकरण को परिभाषित करते हुये भारत में सामाजिक एकीकरण के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- आत्मसात की प्रमुख विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- टी. बी. बॉटोमोर ने सामाजिक संरचना की विचारधाराओं को कितने भागों में विभक्त किया है?
- प्रश्न- सामाजिक संरचना तथा सामाजिक व्यवस्था में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- प्रकार्य की धारा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रकार्य व अकार्य को परिभाषित कीजिए तथा इन दोनों में अन्तर भी बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक प्रतिमानों को परिभाषित करते हुये प्रतिमानों की विशेषताओं की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक प्रतिमानों के विभिन्न प्रकारों की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- लोकाचार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- जनरीतियों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुये इनका महत्व बताइये।
- प्रश्न- अनुशास्ति को परिभाषित करते हुये इनके प्रकारों की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मूल्यों को परिभाषित करते हुये मूल्यों के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिये।
- प्रश्न- मूल्यों के उद्भव को बताते हुये इनके प्रमुख स्तरों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- अनुशास्ति के दमनात्मक सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक मूल्यों की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- मूल्यों के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से आप क्या समझते हैं? उसके प्रमुख आधार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं को संक्षेप में बताइए
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों के नाम बताइए।
- प्रश्न- अवस्था सामाजिक स्तरीकरण का एक सार्वभौमिक आधार है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लिंग सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रक्त सम्बन्ध सामाजिक स्तरीकरण का आधार है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के आधुनिक आधार 'सम्पत्ति' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- क्या शारीरिक कुशलता सामाजिक स्तरीकरण का आधार हो सकता है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानसिक कुशलता सामाजिक स्तरीकरण का आधार है, व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या सामाजिक स्तरीकरण का आधार धार्मिक योग्यता भी होती है।
- प्रश्न- "प्रजातीय अन्तर" सामाजिक स्तरीकरण का आधार है या नहीं? बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सामान्य स्वरूप बताइए तथा इसकी आवश्यकता, महत्व तथा प्रकार्य भी बताए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- स्तरीकरण की आवश्यकता, महत्व एवं प्रकार्य को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की आवश्यकता को बताते हुये सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न आधारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं को बताते हुये इसके स्वरूपों की विस्तृत विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण तथा सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के रूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के रूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के क्या कारण हैं? शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता की विशेषताएं बताइए ।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रभाव क्या हैं?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले घटको की व्याख्या कीजिए।