प्रश्न 1. भौतिक विज्ञान शिक्षण में नवाचार से आप क्या समझते हैं?
विभिन्न नवाचारों का उल्लेख करते हुए किसी एक नवाचार पर विस्तृत लेख लिखिए।
अथवा
नवाचार का आशय बताते हुये टोली शिक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। भौतिक विज्ञान
शिक्षण में इसका उपयोग कैसे किया जाता है? विवरण दीजिए।
अथवा
विज्ञान शिक्षण में विभिन्न नवाचार विधियाँ कौन-सी है? किन्हीं दो का वर्णन
कीजिए।
1. भौतिक विज्ञान शिक्षण में नवाचार का क्या अर्थ है?
2. टोली शिक्षण उपागम से आप क्या समझते हैं? तथा इसकी विशेषतायें बताइये।
3. भौतिक विज्ञान विषय में टोली शिक्षण की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
4. टोली शिक्षण के लाभ एवं दोष लिखिए।
5. टोली शिक्षण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर-भौतिक विज्ञान शिक्षण में नवाचार
(Innovation in Teaching of Physical Science)
विज्ञान एवं तकनीकी के इस युग में शिक्षा का प्रसार अत्यन्त तीव्र गति से हुआ
है। परन्तु शिक्षण की गुणवत्ता में दिन-प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है।
परिणामस्वरूप शिक्षण प्रक्रिया को अधिक उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाने के लिए
परम्परागत शिक्षण विधियों एवं प्रविधियों के अतिरिक्त प्रभावशाली विधियों एवं
प्रविधियों के विकास पर बल दिया जाने लगा। इसलिए जिन युक्तियों, आव्यूह रचनाओं
तथा प्रविधियों का विकास किया गया, उन्हें शिक्षा में नवाचार कहते हैं। नवाचार
एक ऐसा शब्द है जिसमें नवीनता का आभास होता है तथा इसमें शिक्षण अभिगम की
गुणवत्ता एवं विशिष्टता के गुण निहित रहते हैं। नवाचार का मुख्य उद्देश्य
वर्तमान परिस्थितियों में सुधार लाना है जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया अधिक
प्रभावशाली बन सके। पदार्थ विज्ञान शिक्षण में निम्नलिखित नवाचारों का प्रयोग
किया जा रहा है-
(1) अभिक्रमित अधिगम एवं शिक्षण
(2) सूक्ष्म शिक्षण
(3) दल शिक्षण या टोली शिक्षण
(4) अनुकरणीय शिक्षण
(5) मस्तिष्क उद्वेलन
(6) ट्यूटोरियल शिक्षण
(7) संगोष्ठी प्रस्तुतीकरण
टोली शिक्षण (Team Teaching)
भारतीय परम्परागत शिक्षा प्रणाली की तुलना में यह एक नया प्रत्यय है। इस
प्रविधि में दो या दो से अधिक शिक्षक मिलकर समूह में पाठ-योजना तथा शिक्षण
उद्देश्यों को तय करते हैं। सामूहिक रूप से ही विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान
की जाती है। सभी शिक्षक सामूहिक रूप से मिलकर किसी विशिष्ट प्रकरण की
जिम्मेदारी लेते हैं। इसमें शिक्षण विधियों की योजना तथा उनके क्रियान्वयन की
प्रक्रिया लचीली रखी जाती है ताकि छात्रों की योग्यता एवं रुचि के अनुसार,
योजना में परिवर्तन किया जा सके। इसमें सभी शिक्षक मिलकर कार्य करते हैं इसलिए
सभी शिक्षकों की अपनी-अपनी प्रमुख विशेषताओं का छात्रों को इकट्ठा लाभ प्राप्त
होता है। इसके द्वारा शिक्षण कार्य को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
डेविड वारविक ने कहा है, कि,"टोली-शिक्षण संगठन का एक रूप है जिसमें कई शिक्षक
अपने साधनों,रुचियों और दक्षताओं को इकट्ठा करके विद्यार्थियों की आवश्यकताओं
तथा स्कूल की सुविधाओं के अनुसार, उन्हें प्रस्तुत करते हैं और उपयोग में लाते
हैं।"
टोली या दल शिक्षण की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं -
जे. लॉयड ट्रंप के अनुसार – "टोली शिक्षण वह व्यवस्था है जिसमें दो अथवा दो से
अधिक शिक्षक अपने सहयोगियों के साथ शिक्षण नियोजन करते हैं, मूल्यांकन करते हैं
तथा अनुदेशन करते हैं और शिक्षकों की विशेष दक्षताओं का लाभ उठाते हुए दो
कक्षाओं से अधिक छात्रों का शिक्षण करते हैं।"
शेपलिन के अनुसार - "टोली या दल शिक्षण एक अनुदेशनात्मक व्यवस्था है जिसमें
शिक्षण दल तथा विद्यार्थी एक साथ कार्य करते हैं। इसमें दो या दो से अधिक
शिक्षक उत्तरदायित्व के साथ अनुदेशन करते हैं।"
जे. फ्रीमैन के अनुसार – "टोली शिक्षण शिक्षकों और उन्हें नियत विद्यार्थियों
से सन्निहित शिक्षण व्यवस्था का एक प्रकार है, जिसमें दो या दो से अधिक
शिक्षकों को विद्यार्थियों के समान वर्ग, सम्पूर्ण अथवा विशिष्ट भाग के शिक्षण
के लिए समन्वित दायित्व दिया जाता है। टोली विद्यार्थी शिक्षक अथवा आवश्यक
सामग्री को सहायकों के रूप में सम्मिलित कर सकती है।"
हरोल्ड एस. डेविस के अनुसार - "टोली शिक्षण में दो अथवा दो से अधिक शिक्षक
नियमित रूप से लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए दो
अथवा दो से अधिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए पाठों के नियोजन तथा
सह-सम्बन्ध स्थापित करते हैं।"
टोली शिक्षण की विशेषताएँ
(Characteristics of Team-Teaching)
टोली शिक्षण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) यह एक शिक्षण विधि है।
(2) टोली-शिक्षण में दो या दो से अधिक शिक्षक मिलकर पढ़ाते हैं।
(3) यह सहयोग की भावना पर निर्भर करता है।
(4) इसमें शिक्षण उद्देश्य की प्राप्ति का उत्तरदायित्व एक शिक्षक पर न होकर
सामूहिक होता है।
(5) टोली-शिक्षण में पाठ-योजना, व्यवस्था व मूल्यांकन आदि कार्य सामूहिक रूप से
किये जाते हैं।
(6) इस विधि में शिक्षक अपने कार्यों का स्वयं निर्धारण करते हैं।
(7) यह एक लचीली (Flexible) विधि है।
(8) इसमें छात्रों की रुचि व क्षमताओं के अनुसार योजना बनायी जाती है।
(9) इसका उद्देश्य अनुदेशन की गुणवत्ता में वृद्धि करना है।
(10) छात्रों एवं शिक्षकों में परस्पर सहयोग की भावना जागृत होती है।
टोली शिक्षण के उद्देश्य
(Objectives of Team-Teaching)
टोली शिक्षण प्राय: निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है-
(1) उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए भौतिक विज्ञान शिक्षण स्तर
में सुधार लाना।
(2) शिक्षक वर्ग में सहयोग एवं सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित करना।
(3) भौतिक विज्ञान की शिक्षकों की रुचियों, योग्यताओं एवं क्षमताओं का
अधिक-सेअधिक लाभ उठाना।
(4) भौतिक विज्ञान की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के आयोजन में समय और
विद्यार्थियों की संख्या में पर्याप्त लचीलापन लाकर उसे अधिक प्रभावशाली बनाना।
(5) विशेष रूप से योग्य, अनुभवी तथा भोतिक विज्ञान विषय में पंडित कहे जाने
वाले शिक्षकों की सेवाओं से अधिक विद्यार्थियों को लाभान्वित करना।
(6) विद्यार्थियों और विद्यालय की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षण की व्यवस्था
करना और भौतिक विज्ञानों के किन्हीं विशेष या प्रकरणों की शिक्षण सम्बन्धी उनकी
कठिनाइयों को दूर करना।
(7) भौतिक विज्ञान शिक्षण प्रक्रिया में होने वाली गलतियों, पाई जाने वाली
कठिनाइयों तथा अपव्यय - पर रोक लगाना।
(8) टोली शिक्षण का उद्देश्य शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाना होता है।
(9) टोली शिक्षण में शिक्षकों की आपसी दूरी समाप्त हो जाती है।
(10) टोली शिक्षण में शिक्षक अपनी क्रियाओं को स्वयं निर्धारित करते हैं।
टोली शिक्षण के लाभ
(Advantages of Team-Teaching)
1. उपलब्ध प्रतिभाओं का सर्वोत्तम उपयोग- टोली शिक्षण के द्वारा यह अच्छी तरह
सम्भव हो सकता है कि योग्य, प्रतिभाशाली और अनुभवी अध्यापकों एवं विषय
विशेषज्ञों की सेवायें टोली के सदस्यों के रूप में सर्वोत्तम ढंग से प्राप्त की
जाये जब जहाँ जिस प्रकार की प्रतिभा या अनुभव की आवश्यकता हो वहाँ उसी के
उपयुक्त टोली के सदस्य को आगे आकर शिक्षण कार्य करने को कहा जाये तथा सब अपनी
रुचि और योग्यता के अनुसार भरसक सहयोग करें। इस प्रकार टोली शिक्षण उपलब्ध
प्रतिभाओं के सर्वोत्तम उपयोग की उत्तम शिक्षण व्यवस्था प्रस्तुत करता है।
2. उपलब्ध भौतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग – टोली शिक्षण में सभी सदस्य
एक-दूसरे के साथ पूरा सहयोग करते हुए शिक्षण कार्य में अपनी-अपनी भूमिका निभाते
हैं। परम्परागत शिक्षण में एक अध्यापक के लिए उपलब्ध संसाधनों का ठीक समय पर
ठीक तरह उपयोग करना जहाँ अच्छी तरह सम्भव नहीं हो पाता वहाँ टीम शिक्षण में
दूसरे सदस्यों से सहयोग मिलने के कारण एक अध्यापक का सर्वोत्तम उपयोग कर पाने
में समर्थ होता है। जब वह अपनी विषय-वस्तु को छात्रों के सामने प्रस्तुत कर रहा
होता है तो दूसरे सदस्य अनुशासन बनाये रखने, विद्यार्थियों से प्रश्नों या
कठिनाइयों को नोट करने, श्यामपट्ट पर रेखाकृति बनाने या सारांश लिखने, चार्ट,
चित्र, मानचित्र लटकाने, स्लाइड दिखाने, प्रोजेक्टर चलाने तथा सही समय पर अन्य
स्थूल सहायक सामग्री का उपयोग कराने में उसकी पूरी-पूरी सहायता कर सकते हैं।
3. व्यावसायिक उन्नति के अवसर प्रदान करना- टोली शिक्षण में शिक्षण का मुख्य
उत्तरदायित्व अनुभवी, योग्य एवं प्रशिक्षित अध्यापकों के ऊपर होता है। टीम के
कम अनुभवी अध्यापकों को उनका यह साथ काफी प्रेरणादायक और शिक्षात्मक सिद्ध होता
है। उन्हें अपने विषय की बारीकियों तथा शिक्षण कौशलों तथा विधियों के उचित
प्रयोग सम्बन्धी बहुत-सी बातों को सीखने का यहाँ उचित अवसर मिलता है।
4. विद्यार्थियों को सीखने के अच्छे अवसर प्रदान करना - परम्परागत शिक्षण की
तुलना में टोली शिक्षण विद्यार्थियों को आगे बढ़ने और सीखने के अवसर अच्छी तरह
से प्रदान करता है। सर्वोत्तम अध्यापकों को सर्वोत्तम लाभ इसी शिक्षण में सम्भव
है और परिणामस्वरूप उन्हें अच्छी तरह पढ़ाया जाता है। प्रश्न पूछने के उन्हें
पर्याप्त अवसर मिलते हैं, उनकी कठिनाइयों को दूर करने में अधिक-से-अधिक सहायता
मिलती है और विचार-विमर्श के माध्यम से अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता मिलती
है। उनके अभ्यास कार्य तथा गृहकार्य आदि की समय पर ठीक तरह से जाँच होती रहती
है और अधिगम परिणामों का मूल्यांकन समय-समय पर ठीक तरह से होता रहता है।
5. विशेषज्ञों से सीखने के अवसर प्रदान करना - टीम शिक्षण में आवश्यकतानुसार
विषय विशेषज्ञों की सेवायें लेने का प्रावधान होता है। वैसे तो हर विद्यालय में
अनुभव, शिक्षण कौशल तथा विषय की जानकारी के हिसाब से कोई-न-कोई अच्छा अध्यापक
होता ही है जिसके शिक्षण से टीम के अन्य सदस्यों को सीखने का मौका मिल सकता है।
विद्यालय के बाहर से जैसे किसी अन्य विद्यालय, महाविद्यालय, शिक्षक प्रशिक्षण
संस्थान, विश्वविद्यालय, अन्य सरकारी या गैर-सरकारी प्रतिष्ठान, अनुसंधान
केन्द्र आदि में कार्यरत व्यक्तियों को जिन्हें विषय का अच्छा सैद्धान्तिक या
प्रयोगात्मक ज्ञान हो, टीम के सदस्य के रूप में शामिल किया जा सकता है और उस
हालत में विद्यार्थी तथा अध्यापकों दोनों को ही इन विशेषज्ञों से सीखने के उचित
अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
टोली शिक्षण के दोष
(Demerits of Team-Teaching)
टोली शिक्षण के दोष निम्नलिखित हैं -
1. टोली शिक्षण प्रयोगावस्था में है। अत: पर्याप्त अनुसंधान के अभाव में इसके
द्वारा विद्यार्थियों के अधिगम पर पढ़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन नहीं हो पाता
है।
2. टोली शिक्षण एकल शिक्षक वाले विद्यालयों में सम्भव नहीं है।
3. टोली शिक्षण में विद्यालय प्रशासन का सहयोग भी अपेक्षित है।
4. टोली शिक्षण के लिए विषय-विशेषज्ञों के चयन की सदैव समस्या बनी रहती है। 5.
टोली शिक्षण के सदस्य शिक्षकों में परस्पर सहयोग की भावना को दर्शाते हैं।
6. इस विधि में कई शिक्षक एक साथ विद्यार्थियों के समूह को पढ़ाने में संलग्न
रहते हैं। इससे परम्परागत शिक्षण की अपेक्षा इसमें धन अधिक व्यय होता है।
7. टोली शिक्षण अभी प्रयोगावस्था में है। अत: पर्याप्त अनुसंधान के अभाव में
इसके द्वारा छात्रों के अधिगम पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन नहीं हो पाता
है।
दो नवाचार विधि के लिए कृपया संख्या 2 व 4 भी देखें।
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