शिक्षाशास्त्र >> ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षणईजी नोट्स
|
0 |
बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 1. पाठ्य-पुस्तक विधि पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-पाठ्य-पुस्तक विधि
(Text-Book Method)
यह विधि हमारे देश में शिक्षण के लिए प्राचीन काल से चली आ रही है। इस विधि में
अध्यापक छात्रों को पाठ्यक्रम से सम्बन्धित पाठ्य-वस्तु को पढ़ाता है तथा उसके
आधार पर गृहकार्य करने को देता
है जिसको छात्र पाठ्य-पुस्तक के आधार पर तैयार करता है। इस विधि का प्रयोग
जूनियर और माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए अधिक लाभकारी पाया गया है। कुछ
विद्वानों का मत है कि पाठ्य-पुस्तक को शिक्षण विधि के स्थान पर शिक्षण की
सहायक सामग्री के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
गुण (Merits) - इस विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं -
1. यदि पाठ्य-पुस्तकों को सीखे गये ज्ञान की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया जाये
तो उनका महत्व अधिक बढ़ जाता है।
2. पुस्तकों से जो गृह-कार्य दिया जाये यदि उसे समस्या हल करने के रूप में दिया
जाये तो वह अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है।
3. यदि पाठ्य-पुस्तक अच्छी प्रकार से लिखी गई हो और उसमें स्थान-स्थान पर
उदाहरणों की सहायता से समझाया गया हो तो विद्यार्थी उससे ज्ञान प्राप्त करने
में रुचि लेते हैं।
4. विद्यार्थियों को पाठ्य-पुस्तक से गृहकार्य दिया जा सकता है जिससे वे घर में
कार्यरत रह सकें।
दोष (Demerits) - इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं -
1. अधिकतर विद्यार्थियों में पाठ्य-पुस्तकों को रटकर याद कर लेने की प्रवृत्ति
हो जाती है, जिससे उनकी तर्कशक्ति का विकास नहीं हो पाता।
2. यदि पाठ्य-पुस्तक विधि का प्रयोग किया जाए तो अध्यापक को चाहिए कि
विद्यार्थियों के पाठ याद करने के पश्चात् उनमें वाद-विवाद करवायें।
3. यदि पाठ्य-पुस्तक उचित प्रकार से नहीं लिखी गई हो तब उससे विद्यार्थियों में
पाठ्य-पुस्तकों के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है जिससे वे विषय का ज्ञान भी
सही रूप से प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
4. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि विद्यार्थी समझते हैं कि पाठ्य-वस्तु को
पाठ्य-पुस्तक से पढ़ना है, इसलिये वे परीक्षा के कुछ दिन पूर्व उसे पढ़कर
परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रयत्न करते हैं। वे दिन-प्रतिदिन का अपने कार्य
लगन से नहीं करते बल्कि परीक्षा के कुछ दिन पूर्व से अध्ययन आरम्भ करते हैं। इस
प्रवृत्ति से शिक्षा का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
|