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ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2271
आईएसबीएन :0

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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।

प्रश्न 9. विज्ञान शिक्षण में रचनावादी उपागम विधि का वर्णन कीजिए।

उत्तर - विज्ञान शिक्षण में रचनावादी उपागम विधि - सीखना एक सतत्, सहज व निरन्तर चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाला अपने वातावरण से परस्पर अन्त:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं सीखता है। बच्चे अपने आस-पास की चीजों से जुड़े रहते हैं। खोजबीन करना, सवाल पूछना, करके देखना, अपने अर्थ बनाना बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। रचनावादी उपागम सीखने, सिखाने के इसी सिद्धान्त को कहते हैं जिसमें विद्यार्थी अपने ज्ञान की रचना अथवा निर्माण वातावरण से अन्त:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं सीखता है।

रचनावादी उपागम को सीखने-सिखाने का प्राकृतिक या स्वाभाविक सिद्धान्त कहें तो शायद अधिक सटीक होगा। बच्चा स्वाभाविक रूप से ही अपने आपको दूसरों से जोड़कर देखता है जिससे उसकी समझ विकसित होती है और अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर वह अपने भावी जीवन के कार्य कर पाता है। ज्ञान के सृजन की इसी प्राकृतिक विधा को शिक्षाशास्त्र में रचनावादी उपागम कहा जाता है।

रचनावादी उपागम बाल केन्द्रित शिक्षा का आधारभूत सिद्धान्त - रचनावादी उपागम बाल केन्द्रित शिक्षा का आधारभूत सिद्धान्त है। इस उपागम में बच्चों के अनुभवों, उनकी जिज्ञासाओं और सक्रिय सहभागिता को केन्द्र में रखकर पठन-पाठन हेतु वातावरण तैयार किया जाता है। बालकेन्द्रित व्यवस्था में शिक्षक एक सुगमकर्ता के रूप में बच्चों को सीखने हेतु यथोचित सामग्री सीखने की यथोचित परिस्थितियों को उपलब्ध कराने और निरन्तर उनका व्यापक एवं सतत् मूल्यांकन करते हुए उन्हें अपनी क्षमताओं की महती भूमिका का निर्वहन करता है।

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में शिक्षा के सार्वभौमीकरण और गुणवत्तापरक होने के विषय में कई प्रयास किये गये। कोठारी आयोग, नई शिक्षा नीति 1986 सभी सरकारी आयोग और नीति पत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता को अहम मुद्दे की तरह प्रस्तुत किया गया। बिना गुणवत्ता के शिक्षा एक औपचारिकता मात्र है।

रचनावादी उपागम गुणवत्तापरक शिक्षा का स्वाभाविक सिद्धान्त है - रचनावादी उपागम गुणवत्तापरक व सार्थक शिक्षा का वह स्वाभाविक व आनन्दमयी सिद्धान्त है जिसमें बालक अपना सर्वश्रेष्ठ विकास कर सकता है और वास्तविक जीवन में अपने ज्ञान का सही मायनों में प्रयोग करते हुए कुशलतापूर्वक जीवनयापन कर सकता है। शिक्षा व्यवस्था का वास्तविक सरोकार बालक को सार्थक अनुभव देने वाली शिक्षा प्रदान करने का है जिससे वे अपने अनुभव से उस यथार्थ और व्यावहारिक ज्ञान का सृजन करे जो उन्हें कुशलतापूर्वक जीवनयापन करने योग्य बनाए।

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