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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


प्रश्न 4 - हिन्दी पहलवों के बारे में आप क्या जानते है ? बताइए।
अथवा
यवन-बख्शी शासकों के विषय में आप क्या जानते है ?

उत्तर - हिन्द-पहलवों का इतिहास भारतीय ग्रन्थों में मिलने वाले अनेक छिट-पुट उल्लेखों, क्लासिक लेखों, यवन शासकों के लेखों तथा बहुसंख्यक मुद्राओं के आधार पर ज्ञात किया जाता है। पहलव मूलतः पार्थिया के निवासी थे। पार्थियां बैक्ट्रिया के परिचम की ओर कैस्पियन सागर के दक्षिण-पूर्व में स्थित सेल्यूकसी साम्राज्य का सीमावर्ती प्रान्त था। तृतीय शताब्दी ई.पू. के मध्य बैक्ट्रिया के साथ ही पार्थिया के यवन क्षत्रप ने भी अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी। परन्तु शीघ्र ही पूर्व की ओर से आने वाले कुछ व्यक्तियों ने यवन शासक की हत्या कर दी तथा उन्होनें जिस साम्राज्य की नींव डाली वह 'पार्थियन' के नाम से विख्यात हुआ।

पार्थियन साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मिथ्रदात प्रथम को माना जाता है जिसका शासन काल 171-130. ई. पू. रहा। पूर्व में उसने जेड्रोसिया, हेरात तथा सीस्तान पर विजय प्राप्त की थी। उसके बाद फ्रात द्वितीय (138-128 ई. पू.) तथा फिर आर्तवान (128-123 ई. पू.) राजा हुये जो शकों के विरुद्ध युद्ध में मारे गये। मिथ्रदात द्वितीय (123-88 ई. पू.) को इस वंश का सबसे प्रतापी राजा माना जाता है। उसने शकों को परास्त कर सीस्तान और कान्धार पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। मिथ्रदात द्वितीय के बाद भी पार्थियनों बना रहा। इन प्रदेशों से मिले नरेशों के गवर्नर थे, परन्तु बाद में स्वतन्त्र हो गये तथा इण्डो-यूनानियों को परास्त कर उन्होंने भारत के कुछ भागों पर अधिकार भी कर लिया।

भारत पर आक्रमण करने वाले पार्थियन सरदार मूल रूप से सीस्तान तथा आरकोसिया से आये थे। उन्हीं को भारतीय ग्रन्थों में पहलव कहा गया है। पार्थियनों में निम्नलिखित शासकों के नाम विशेष रूप सें उल्लेखनीय हैं -

1. वोनोनीज - शक शासक मेउस जिस समय गन्धार में शासन कर रहा था उसी समय वोनोनीज सीस्तान, आरकोसिया तथा एरिया का राजा था। वह अपने सिक्कों पर 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण करता है। उसके सिक्के यवन नरेश यूक्रेटाइडीज के सिक्कों के अनुकरण पर ढाले गये हैं। इस प्रकार के सिक्कों पर यूनानी तथा खरोष्ठी दोनों ही लिपियों में लेख प्राप्त होते हैं। सिक्कों के पृष्ठ भाग पर उसके भाई श्पलहोर तथा भतीजे श्पलगडम के नाम मिलते हैं। सम्भवतः ये दोनों उसके प्रान्तीय शासक थे।

2. श्पेलिरस - वोनानीज के पश्चात श्पेलिरस राजा बना। उसके कुछ सिक्के प्राप्त हुये हैं जिसके मुख्य भाग पर यूनानी लिपि में श्पेलिरस का नाम तथा पृष्ठ भाग पर शक नरेश एजेज का नाम उत्कीर्ण है। इससे ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि सम्भवतः शक नरेश उसकी अधीनता में उपराजा (वायसराय) था। इससे पार्थियों का तक्षशिला पर अधिकार सूचित होता है।

3. गोण्डोफर्नीज - गोण्डोफर्नीज पहलव वंश का सबसे अधिक शक्तिशाली राजा था। उसके शासन काल का एक अभिलेख तख्ते-वाही (पेशावर जिला) से प्राप्त हुआ है जिस पर 103 की तिथि दी गई है। यदि इसे विक्रम संवत की तिथि स्वीकार की जाये तो ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि वह 103 -57 = 46 ईस्वी में राज्य कर रहा था। यह तिथि उसके राज्यकाल के 26 वें वर्ष की है। अतः उसने 20 ईस्वी (46-26) में शासन कार्य प्रारम्भ किया था। गोण्डोफर्नीज के सिक्के पंजाब, सिन्ध, कान्धार, सीस्तान तथा काबुल घाटी से पाये गये है। उसके सिक्कों से उसके साम्राज्य विस्तार की सूचना मिलती है। ऐसा अनुमान है कि उसने शकों को परास्त कर पंजाब तथा सिंध पर अपना अधिकार स्थापित किया था। तक्षशिला को उसने अपनी राजधानी बनाया था। ईसाई अनुश्रुति में उसे 'सम्पूर्ण भारत का राजा' कहा गया है। इसके शासन काल में ईसाई धर्म का प्रचारक सेन्ट टामस भारत आया था। परन्तु इस अनुश्रुति की प्रामाणिकता पर कई इतिहासकार सन्देह करते हैं।

गोण्डोफर्नीज के उत्तराधिकारियों के विषय में इतिहासकारों में मत-वैभिन्न है। सिक्कों से दो राजाओं के नाम ज्ञात होते हैं - एब्डगेसस तथा पकोरिस। ये दोनों निर्बल शासक थे। इसके पश्चात कुषाणों के भारत पर आक्रमण हुए। कुषाणों ने पहलवों को परास्त कर यहाँ अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। परन्तु ऐसा अनुमान है कि पश्चिमी भारत में द्वितीय शताब्दी ईस्वी तथा पहलवों की सत्ता किसी न किसी रूप में बनी रही। सातवाहन नरेश गौतमी पुत्र शातकर्णि को नासिक गुहालेख में किसी पह्लव राजा को उखाड़ फेंकने का श्रेय दिया गया है।

पार्थियन राजाओं के सिक्कों पर 'ध्रमिय' (धार्मिक) उपाधि उत्कीर्ण मिलती है। इतिहासकारों का अनुमान है कि शकों के समान वे भी भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए तथा उन्होने बौद्ध धर्म भी ग्रहण किया था।

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