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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


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चट्टान एवं मैदान

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

पृथ्वी के क्रस्ट (Crust) में पाये जाने वाले पदार्थों को चट्टान कहा जाता है। भूगोल में 'चट्टान' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में लिया जाता है। 'चट्टान' शब्द के अन्तर्गत क्रस्ट के उन सभी पदार्थों को सम्मिलित किया जाता है जो चाहे कठोर हों या कोमल। चट्टान, ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर (Sandstone) के समान कठोर हो सकती है, चीका (clay) और रेत की तरह कोमल हो सकती है, खड़िया मिट्टी (chalk) तथा चूने के पत्थर (limestone) की भांति प्रवेश्य (pervious) हो सकती है अथवा स्लेट के सदृश अप्रवेश्य (impervious) हो सकती है।

आर्थर होम्स के अनुसार शैलों का अधिकांश भाग खनिजों का सम्मिश्रण होता है। पपड़ी के अनेक तत्व कई रूपों में एकत्रित तथा संगठित होकर शैलों का निर्माण करते हैं। पपड़ी (क्रस्ट) के तत्वों पर यदि दृष्टिपात किया जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि पृथ्वी की पपड़ी (crust) अधःस्तर (substratum) से हल्की तथा कम घनत्व वाली है। प्रायः ऐसा विश्वास किया जाता है कि पपड़ी की शैलों की रचना लगभग 2000 खनिजों से हुई है। इनमें से केवल 6 खनिजों का अंश अधिक रहता है-1. फेल्सपार (Felspar), 2. क्वार्ट्स या स्फटिक (quartz), 3. पायरोक्सींस (pyroxenes), 4. एम्फ्रीवोल्स (Amphiboles), 5. माइका या अभ्रक (mica) तथा 6. ओलिवीन (olivine)।

भूपपड़ी के शैलों का कुछ भाग कठोर तथा संगठित होता है, जबकि कुछ शैल ढीली तथा असंगठित होती है। कुछ शैल आकार में बड़ी कुछ छोटी, कुछ एक समाने तथा कुछ भिन्न-भिन्न होती है। साधारण रूपों में शैलों की रचना दो रुपों में होती है-या तो पपड़ी के ऊपर या भूपृष्ठ के नीचे। "पृष्ठ के नीचे बनी शैल ‘आग्नेय' तथा ऊपर निर्मित शैल 'अवसादी शैल' कही जाती है। इन दो शैनों के स्थान परिवर्तन के समय उनमें परिवर्तन हो जाता है। इस तरह परिवर्तन शैल रूपान्तरित शैल होती है। जहाँ तक शैलों की उत्पत्ति का सवाल है, रूपान्तरित तथा अवसादी चट्टानें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से आग्नेय शैल से ही निर्मित होती है। सर्वप्रथम पृथ्वी के तरल अवस्था के बाद पिघले पदार्थों के ठोस होने के कारण आग्नेय शैल का निर्माण हुआ पुनः अपरदन के विभिन्न साधनों ने आग्नेय शैल के अपरदित पदार्थों को अन्यत्र जमा करना प्रारंभ कर दिया। परिणामस्वरूप संगठन के कारण अवसादी शैलों का निर्माण हुआ। आगे चलकर गतिक तथा तापीय परिवर्तनों के कारण आग्नेय तथा अवसादी शैलों का रुप बदल गया, जिससे तीसरे प्रकार की शैल रूपान्तरित या कायान्तरित का निर्माण हुआ।

भूपटल के द्वितीय श्रेणी के सभी उच्चावचनों में 'मैदान' अन्य की तुलना में विशिष्ट स्थान रखता है। इसके निर्माण तथा रचना की सरलता के कारण इनका वर्गीकरण भी अधिक सरल तथा सुबोध है।
मैदान प्रायः भूपटल पर समतल किन्तु निचले स्थल खण्ड होते हैं। मैदान सागर तल से ऊँचे या नीचे हो सकते हैं, परन्तु अपने समीपी पठार तथा पहाड़ से कदापि ऊंचे नहीं हो सकते हैं।

ऊंचाई की दृष्टि से सागर तल से 150 मीटर तक ऊंचे किन्तु समतल तथा विस्तृत स्थलखण्ड को मैदान की संज्ञा प्रदान की जा सकती है। यदि पुनर्युवनित पेनीप्लेन, उत्थान के बाद पुनः पेनीप्लेन हो जाता है तो इस प्रकार का पेनीप्लेन मैदान निश्चय ही सागर तल से अधिक ऊँचाई पर होगा। मैदान का ऊपरी धरातल प्रायः समतल तथा सपाट होता है, परन्तु अपरदन के बाद वह तरंगित ढाल (undulating slope) वाला भी हो सकता है। मैदान का ढाल मंद होता है तथा सागर तल की ओर क्रमशः कम होता जाता है। संरचना की दृष्टि से मैदानों में प्रायः एक ही प्रकार के पदार्थों का निक्षेप रहता है, परन्तु कभीकभी अपवाद भी होते हैं। एक मैदान से दूसरे मैदान में अनेक दृष्टियों से पर्याप्त अन्तर होता है। यह अन्तर ऊंचाई के अलावा, स्थिति आकार, धरातलीय रुप, क्षेत्रीय विस्तार तथा उत्पत्ति के अनुसार हुआ करता है। द्वितीय श्रेणी के उच्चावचनों में केवल उन्हीं मैदानों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका क्षेत्रीय विस्तार व्यापक होता है। इस प्रकार द्वितीय श्रेणी के स्थलरूप के अन्तर्गत मैदान में तटीय मैदान तथा आन्तरिक मैदान को सम्मिलित किया जाता है। इसके विपरीत कुछ मैदानों को निर्माण अपरदन के कारकों द्वारा भी अपरदन तथा निक्षेप द्वारा होता है। इन मैदानों को तृतीय श्रेणी के स्थलरुपों में सम्मिलित किया जाता है।

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