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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


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महासागरीय जल की गतियाँ : तरंगे, धाराएँ व ज्वार-भाटा

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

महासागरीय जल स्थिर न होकर गतिमान है। इसकी भौतिक विशेषताएं (जैसे- तापमान, खारापन, घनत्व) तथा वाह्य बल (जैसे- सूर्य, चन्द्रमा, तथा वायु) अपने प्रभाव से मरासागरीय जल को गति प्रदान करता है। महासागरीय जल में ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज दोनों गतियाँ पायी जाती हैं। महासागरीय धाराएँ व लहरें क्षैतिज गति से सम्बंधित हैं। ज्वार-भाटा ऊर्ध्वाधर गति से सम्बंधित है। महासागरीय धाराएँ एक निश्चित दिशा में बहुत बड़ी मात्रा में जल का लगातार बहाव है; जबकि तरंगे जल की क्षैतिज गति हैं। धाराओं में जल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है, जबकि तरंगों में जल . गति नहीं करता है लेकिन तरंगों के आगे बढ़ने का क्रम जारी रहता है। उर्ध्वाधर गति महासागरों एवं समुद्रों में जल के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने से सम्बंधित है। सूर्य एवं चन्द्रमा के आकर्षण के कारण महासागरीय जल एक दिन में दो बार ऊपर उठते एवं नीचे गिरते हैं। अधःस्थल से ठंडे जल का उत्प्रवाह एवं अवप्रवाह महासागरीय जल के ऊर्ध्वाधर गति के प्रकार हैं।

तरंगे वास्तव में ऊर्जा है, जल नहीं, जो कि महासागरीय सतह के आर-पार गति करते हैं। तरंगों में जल कण छोटे वृत्ताकरा रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है जिससे तरंगे उत्पन्न होती हैं। सतह जल की गति महासागरों के गहरे तल के स्थिर जल को कदाचित् ही प्रभावित करती है। तरंगे जैसे ही आगे की ओर बढ़ती हैं, बड़ी होती जाती हैं तथा वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं।

अधिकतर तरंगे वायु के जल की विपरीत दिशा में गति से उत्पन्न होती हैं। जब-जब नॉट या उससे कम वेग वाली समीर शांत जल पर बहती हैं तब छोटी-छोटी उर्मिकाएं बनती हैं तथा वायु की गति बढ़ने के साथ ही इनका आकार बढ़ता जाता है। एक तरंग का आकार एवं आकृति उसकी उत्पत्ति को दर्शाता है। युवा तरंगे अपेक्षाकृत ढाल वाली होती हैं तथा संभवतः स्थानीय वायु के कारण बनी होती है। गिरता हुआ जल पहले वाले गर्त को ऊपर की ओर ढकेलता है एवं तरंग नये स्थिति में गति करती हैं। तरंगों के नीचे जल की गति वृत्ताकार होती है।

चंद्रमा एवं सूर्य की आकर्षण शक्ति के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र तल का नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार भाटा कहते हैं। जलवायु सम्बंधी प्रभावों (वायु एवं वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन) के कारण जल की गति को महोर्मि (Surge) कहा जाता है। महोर्मि ज्वार-भाटा की तरह नियमित नहीं होते। ज्वार-भाटाओं का स्थानिक एवं कालिक रूप से अध्ययन बहुत ही जटिल है क्योंकि इसके आवृत्ति, परिमाण तथा ऊंचाई में बहुत अधिक भिन्नता होती है। चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वाभाटाओं की उत्पत्ति होती है। दूसरा कारक, अपकेन्द्रीय बल भी है जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित भी करता है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेन्द्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो महत्त्वपूर्ण ज्वार-भाटाओं को जन्म देते हैं। पृथ्वी के धरातल पर, चन्द्रमा के निकट वाले भागों में अपकेन्द्रीयकरण बल की अपेक्षा गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है और इसलिए यह बल चन्द्रमा की ओर ज्वारीय उभार का कारण है। चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के दूसरी तरफ कम होता है क्योंकि यह भाग चन्द्रमा से अधिकतम दूरी पर है तथा यहाँ अपकेन्द्रीय बल प्रभावशाली होता है। अतः यह चन्द्रमा से दूर दूसरा ज्वारीय उभार पैदा करता है। पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज ज्वार उत्पन्न करने वाले बल उर्ध्वाधर बलों से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं जिनसे ज्वारीय उभार पैदा होते हैं। ज्वार-भाटा को उनकी आवृत्ति (बारम्बारता) के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से विभाजित कर सकते हैं- अर्द्ध-दैनिक ज्वार, दैनिक ज्वार, मिश्रित ज्वार। सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वार भाटा को वृहत् ज्वार (Spring tides) एवं निम्न ज्वार (Neap tides) में विभाजित किया जा सकता है। महीने में जब एक बार चन्द्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है (उपभू), तब असामान्य रूप से उच्च एवं निम्न ज्वार उत्पन्न होता है। इस दौरान ज्वारीय क्रम सामान्य से अधिक होता है। दो सप्ताह बाद जब चन्द्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है (अपभू), तब चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण सीमित होता है तथा ज्वार-भाटा के क्रम उनकी औसत ऊंचाई से कम होते हैं। जब पृथ्वी सूर्य के निकट होती है (उपसौर), तो प्रत्येक वर्ष 3 जनवरी के आस-पास उच्च एवं निम्न ज्वारों के क्रम भी असामान्य रूप से अधिक न्यून होते हैं। जब पृथ्वी सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर होती है (अपसौर), तो प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई के आस-पास ज्वार के क्रम औसत की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। उच्च ज्वार एवं निम्न ज्वार के बीच का समय, जब जलस्तर गिरता है, भाटा (Ebb) कहलाता है।

महासागरीय धाराएँ महासागरों में नदी प्रवाह के समान हैं। वे निश्चित मार्ग एवं दिशा में जल के नियमित प्रवाह को दर्शाते हैं। महासागरीय धाराएँ दो प्रकार के बलों के द्वारा प्रभावित होती हैं, वे हैं प्रथम, जो जल की गति को प्रारम्भ करते हैं तथा द्वितीय, जो धाराओं के प्रवाह को नियन्त्रित करता है। प्राथमिक बल जो धाराओं को प्रभावित करते हैं- (i) सौर ऊर्जा से जल का गर्म होना, (ii) वायु (iii) गुरुत्वाकर्षण तथा (iv) कोरियोलिस बल (Coriolis Force)। महासागरीय धाराओं को उनकी गहराई के आधार पर ऊपरी या सतही जलधारा (Surface Current) व गहरी जलधारा (Deep Water Currents) में वर्गीकृत किया जा सकता है। महासागरीय धाराओं को तापमान के आधार पर गर्म एवं ठंडी जलधाराओं में वर्गीकृत किया जाता है- (i) ठंडी जलधाराएं जो ठंडा जल को गर्म जल क्षेत्रों में लाती हैं। (ii) गर्म जल धासएँ जो गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुंचाती हैं।

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