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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


46.

आर्द्रता और वर्षण

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प को 'आर्द्रता' कहते हैं।
[कानपुर 201]

वायुमण्डल के संघटन में जलवाष्प का योगदान 2 प्रतिशत होता है, परन्तु यह मात्रा समयसमय तथा स्थान-स्थान के अनुसार बदलती रहती है। यह 'शून्य' से लेकर 5 प्रतिशत तक हो सकती है। समस्त जलवाष्प का 50% भाग वायुमण्डल के निचले 2000 मीटर तक वाले भाग में उपस्थित रहता है। वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा में मौसम तथा स्थानीय परिवर्तन के कई महत्वपूर्ण प्रभाव होते हैं। जलवाष्प की वास्तविक मात्रा पर वर्षा की मात्रा तथा स्वरूप, पृथ्वी से विकिरण द्वारा उष्मा के नष्ट होने की मात्रा, धरातलीय तापमान, वायुमण्डल की गुप्त उष्मा (Latent Heat), वायुराशि की स्थिरता तथा अस्थिरता आदि निर्भर होती है। वायुमण्डल को जलवाष्प सागरीय भागों, स्थल स्थित झील, जलाशय, तालाब, सिंचित कृषि क्षेत्र तथा नदियों एवं वनस्पतियों से प्राप्त होती है। जिस प्रक्रिया द्वारा जल जलवाष्प में बदल जाता है, उसे वाष्पीकरण (Evaporation) कहते हैं। वाष्पीकरण की मात्रा तथा तीव्रता वायु की गति, तापमान तथा शुष्कता पर निर्भर होती है। जितनी ही उच्च तापमान पर वायु शुष्क होती है तथा गति तीव्र होती है, वाष्पीकरण उतना ही अधिक तथा तीव्र होती है। अधिक तापमान वाली शुष्क हवा में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होने के कारण वाष्पीकरण तीव्र होता है क्योंकि हवा के संतृप्त होने में समय लगता है। इसी तरह स्थिर हवा में नमी का स्थानान्तरण न हो सकने के कारण वायु शीघ्र संतृप्त हो जाती है, जबकि अस्थिर हवा के कारण वाष्प का स्थानान्तरण होता रहता है। स्थल की अपेक्षा सागरों पर वाष्पीकरण अधिक होता है। 10°N से 10°S अक्षांशों में सर्वाधिक वाष्पीकरण महाद्वीपों पर होता है जहाँ पर वर्षा द्वारा प्राप्त जल तथा वनस्पतियों द्वारा निकाले गये जल वाष्पीकरण के लिए सुलभ हो जाते हैं। महासागरों पर सर्वाधिक
वाष्पीकरण दोनों गोलार्डों में 10°-20° अक्षांशों के मध्य होता है क्योंकि निम्न अक्षांशों में हवा मन्द परन्तु यहाँ तीव्र होती है। वायुमण्डल की आर्द्रता को विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity) निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity) तथा सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity) के रूप में प्रकट करते हैं।

बादल जल सीकरों अथवा हिम सीकरों का ही बड़े पैमाने पर समूह होता है जो कि कुहरे की अपेक्षा अधिक ऊंचाई पर पाया जाता है। वास्तव में ये जल सीकर या हिम सीकर वायुमण्डल में लटकते रहते हैं। बादल विभिन्न ऊंचाईयों पर पाये जाते हैं परन्तु समताप मण्डल में इनका सर्वथा अभाव होता है। जल वर्षा के लिए अस्थायी उष्णार्द्र वायु तथा वायुमण्डल में असंख्य मात्रा में 'आर्द्रताग्राही नाभिक' (Hydroscopic Nuclei) का होना आवश्यक है। उठती हुई वायु ठंडी होने के बाद संतृप्त हो जाती है तथा संघनन के बाद बादलों के निर्माण के बावजूद भी वर्षा नहीं पाती है। इससे स्पष्ट है कि वर्षा के लिए वायु का अति संतृप्त (Supersaturation) होना आवश्यक है। जब सापेक्षिक आर्द्रता 100% हो जाती है तो उसके बाद वायु के ठंडी हो जाने पर संघनन प्रारम्भ होता है, परन्तु सबसे पहले बड़े-बड़े 'आर्द्रताग्राही- नाभिक' के चारों ओर ही संघनन प्रारम्भ हो जाता है। इस तरह से बनी बूंदों को मेघ सीकर (Cloud drophets) कहते हैं। इनके अधिक मात्रा में समूहन से बादल का निर्माण होता है। जब तक ये मेघ सीकर आपस में इतने बड़े नहीं हो जाते कि वायु उन्हें रोकने में असमर्थ हो जाय, तब तक वर्षा नहीं हो पाती है। यही कारण है कि कभी-कभी आकाश घने बादलों से आच्छादित रहता है परन्तु वर्षा नहीं हो पाती। मेघ सीकर अपने आकार में भिन्नता के कारण विभिन्न गति से गिरकर आपस में टकराती रहती है जिस कारण बड़े मेघ सिकरों का आकार बढ़ता जाता है और बूंद का निर्माण होता. है। जब ये इतनी बड़ी हो जाती हैं कि उठती वायु इन्हें रोकने में असमर्थ हो जाती है तो ये बरस पड़ती है जिसे जलवर्षा कहते हैं तथा इस प्रक्रिया को वर्षण (Precipitation) के नाम से जाना जाता है।

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