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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

* आधुनिक भौतिक भूगोल की नींव आस्कर पेशेल महोदय ने डाली थी।
* जलीय स्थलाकृति के निर्माण एवं विकास से सम्बंधित 'अपरदन चक्र' के सिद्धान्त का प्रतिपादन वाल्टर पैक ने किया।
* स्थलरूपों के निर्माण तथा विकास से सम्बन्धित भौगोलिक चक्र के प्रतिपादक विलियम मौरिस डेविस थे।
* जेम्स हट्टन ने बताया है कि, 'वर्तमान भूत की कुंजी है।'
* जान मरे को आधुनिक समुद्र विज्ञान का प्रणेता माना जाता है।
* उच्चावचों की दृष्टि से मैदानों को द्वितीय श्रेणी का उच्चावच माना जाता है।
* जीवमण्डल का आवरण परत सामान्यतः 30 Km मोटा है।
* डेल्टा तृतीय श्रेणी का उच्चावच है।
* सागरीय जैविक एवं अजैविक संसाधनों के मापन, निर्धारण, विदोहन तथा संरक्षण से सम्बंधित अध्ययन व्यवहारिक समुद्र विज्ञान नामक समुद्र विज्ञान की शाखा के अन्तर्गत किया जाता है।
* मानसून की खोज सर्वप्रथम हिपालस महोदय ने किया।
* भारतीय मानसून का सटीक विवरण सर्वप्रथम अलमसूदी ने दिया।
* जर्मन भूगोलवेत्ता हम्बोल्ट को मौसम विज्ञान का संस्थापक माना जाता है।
* सर्वप्रथम अरस्तु ने पृथ्वी के आकार को गोलाभ बताया।
* प्रथम श्रेणी के उच्चावचों के अन्तर्गत महाद्वीप तथा महासागरीय वेसिन आते हैं।
* द्वितीय श्रेणी के उच्चावच पर्वत-भ्रंश पठार, मैदान तथा झील है।
* तृतीय श्रेणी के उच्चावच के अन्तर्गत अपक्षय, अपरदन एवं निक्षेपण द्वारा जनित स्थलरूपों की आकारिकी, उत्पत्ति एवं विकास का गहन अध्ययन किया जाता है।
* जलमण्डल या सागरों के अध्ययन को समुद्र विज्ञान कहते हैं।
* भौतिक भूगोल, भूगोल की दो प्रमुख शाखाओं- भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल में से एक है। भू-आकृति विज्ञान मुख्य रूप से स्थल रूपों का अध्ययन है जिसके अन्तर्गत तीन श्रेणियों के उच्चावचों को समाहित किया जाता है।
* पृथ्वी के चतुर्दिक व्याप्त गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं।
* वायुमण्डल का अध्ययन करने वाले विज्ञान को मौसम विज्ञान तथा जलायु विज्ञान कहते हैं।
* पृथ्वी के सभी जीवित जीव तथा वे पर्यावरण जिनसे इन जीवों की पारस्परिक क्रिया होती है. मिलकर जीवमण्डल की रचना करते हैं।
* वैज्ञानिक धरातल पर सर्वप्रथम पृथ्वी की गोलाभ आकृति को न्यूटन ने सिद्ध किया।
* सभी ग्रहों का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुआ था।
* आदि पृथ्वी का वायुमण्डल अपचायक था।
* आदि पृथ्वी के वायुमण्डल में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की अधिकता थी।
* जार्ज लैमेन्टेयर ने बिग-बैंग सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
* चैम्बरलिन तथा मोल्टन ने पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित ग्रहाणु परिकल्पना का प्रतिपादन किया।
* एडविन हब्बल ने विस्तरित ब्रह्माण्ड की परिकल्पना का प्रतिपादन किया।
* निहारिका को सौर मण्डल का जनक माना जाता है।
* निहारिका परिकल्पना का प्रतिपादन लाप्लास महोदय ने किया।
* पृथ्वी के रेडियोधर्मी तत्वों के आधार पर पृथ्वी की आयु 3.1 अरब वर्ष बताई गयी है।
* आटोश्मिड ने बताया कि पृथ्वी की उत्पत्ति गैसों और कणों से हुई थी।
* आटोश्मिड की पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित परिकल्पना का नाम 'अन्तरतारक धूलि परिकल्पना' हैं।
* अद्वैतवादी संकल्पना के अन्तर्गत पृथ्वी की उत्पत्ति एक तारे से मानी जाती है इसे एक तरफ परिकल्पना भी कहते हैं।
* द्वैतवादी परिकल्पना के अन्तर्गत पृथ्वी की उत्पत्ति एक तारे से न होकर दो तारों से मानी जाती है। अतः इसे द्वितारक संकल्पना भी कहते हैं।
* पुच्छलतारा परिकल्पना कास्ते दफन ने 1749 में प्रतिपादित किया।
* लाकियर महोदय ने 1919 में उल्कापिण्ड परिकल्पना का प्रतिपादन किया।
* जेम्स, जीन्स एंव जेफ्रीज ने 1919 में ज्वारीय परिकल्पना का प्रतिपादन किया, जो पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों की उत्पत्ति से सम्बंधित परिकल्पना है।
* पृथ्वी पर जीवन सबसे पहले आदि सागर में 3.8 अरब वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ।
* इओन का भूगर्भिक इतिहास में सबसे लम्बी अवधि वाला प्रभाग है।
* पृथ्वी पर जीवन सर्वप्रथम आर्कियो जोइक महाकल्प में प्रारम्भ हुआ।
* चर्नियन, पर्वत निर्माणकारी हलचल के फलस्वरूप अरावली पर्वत का विकास हुआ था।
* पेरीपेटस एनीलिडा तथा आर्थोपोडा संघ का संयोजक जन्तु है।
* कैम्ब्रियन युग की अवसादी चट्टानों से सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्म की प्राप्ति हुई।
* विंध्याचल पर्वत की उत्पत्ति कैम्ब्रियन शक काल में हुई थी।
* सिल्यूरिन युग में जीवों का पदार्पण स्थल भाग पर हुआ।
* डिवोनियन शक को मत्स्य युग की संज्ञा प्रदान की गयी है।
* सिल्यूरिन शक काल रीढ़ वाले जीवों का काल है।
* गोण्डवाना क्रम के कोयले का निर्माण कार्बोनिफरस काल में हुआ।
* मीसोजोइक महाकल्प को सरीसृपों का युग कहा जाता है।
* लेटिमेरिया मछली तथा साइकस पौधे को जीवित जीवाश्म की संज्ञा दी गयी है।
* मानव की उत्पत्ति प्लायोसीन शक में हुई थी।
* वृहद लघु एवं शिवालिक हिमालय का निर्माण क्रमशः उसोसिन-ओलिगोसीन शक, आयोसीन एवं प्लायोसीन शक में हुआ था।
* मछली- उभयचर- सरीसृप- मानव ही मानव जाति के विकास का सही क्रम है।
* मानव की उत्पत्ति सर्वप्रथम अफ्रीका महाद्वीप में हुई।
* शिवालिक पर्वतमाला में रामपिथेकस नामक आदिमानव का जीवाश्म प्राप्त हुआ है।
* क्रो-मैगनन को बुद्धिमान मानव का निकटतम पूर्वज माना जता है।
* मध्यजीवी महाकल्प डायनासोरों का सुनहरा काल था।
* डिवोनियन शक में उभयचरों का उदय हुआ।
* अण्डा देने वाले निम्नकोटि के स्तनियों को प्रोटीभीरिया की संज्ञा दी जाती है।
* जैव विकास के क्रम में सरीसृप से उड़ने वाले प्रथम पक्षी आर्कियोप्टेरिस का विकास जुरशिक शक में हुआ। मेटाथीरिया अर्थात् कंगारू जैसे जीव का विकास जुरैशिक शक में हुआ।
* भारत के दक्कन पठारी भाग पर ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरूप लावा का जमाव क्रिटेशियस शक में हुआ।
* विश्व के सभी मोड़दार पर्वतों (आल्प्स, रॉकी, एण्डीज एवं हिमालय आदि) का विकास अल्पाइन पर्वतीकरण हलचल के फलस्वरूप हुआ।
* पोलिको सारस में सर्वप्रथम स्तनियों के लक्षण प्रकट हुए।
* ग्रहाणु परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी का अन्तरतम भाग ठोस अवस्था में है।
* भूकम्प की 'S' लहरें तरल भाग में लुप्त हो जाती है।
* मोहो असम्बद्धता पृथ्वी की आन्तरिक संरचना में निचली क्रस्ट तथा ऊपरी मैंटिल के बीच पायी जाती है।
* पृथ्वी का औसत घनत्व 5.517 ग्राम प्रतिघन सेण्टीमीटर है।
* अधिक घनत्व वाले, भारी तथा चुम्बकीय प्रकृति के निकिल एवं लोहे के तत्वों की उपस्थिति के कारण पृथ्वी के कोर में अधिक घनत्व पाया जाता है।
* भू-पर्पटी की एक निश्चित गहराई तक तापमान बढ़ने की दर 32 मीट/डिग्री सेण्टीग्रेड होती है।
* पृथ्वी की क्रस्ट में मुख्यतः ग्रेनाइट, वेसाल्ट तथा पेरिडोटाइट चट्टाने पायी जाती हैं।
* वायु तथा जल मण्डलों के संचालन हेतु उष्मा अथवा ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है।
* भूत्तल पर रचनात्मक कार्यों (पर्वत, पठार, भूकम्प आदि) के लिए उष्मा पृथ्वी के आन्तरिक भाग से प्राप्त होती है।
* आयतन की दृष्टि से मैंटिल समस्त पृथ्वी के 83% भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
* निम्न गति के मण्डल की मोटाई 100-200 किलोमीटर होती है।
* मैण्टिल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मण्डल की संज्ञा दी जाती है।
* एस्थिनोस्कीयर के पदार्थ अर्द्ध तरलावस्था में पाये जाते हैं।
* भूकम्पीय आधार पर पृथ्वी के मैण्टिल तथा केन्द्र को पाइरोस्फीयर तथा बैरीस्फीयर की संज्ञा प्रदान की गयी है।
* लेहमैन असम्बद्धता पृथ्वी की संरचना के बाह्य तथा आन्तरिक क्रोड के बीच में स्थित है।
* समस्त पृथ्वी में लोहा की मात्रा सर्वाधिक पायी जाती है जो 35.5% है।
* पृथ्वी की संरचना में बाह्य क्रोड तरलावस्था में पाया जाता है।
* I UGG के अनुसार पृथ्वी का आन्तरिक अन्तरतम ठोस अवस्था में पाया जाता है।
* पृथ्वी के केन्द्र का घनत्व 13 से 13.6 ग्राम प्रति घन सेमी0 होता है।

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