बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का क्या कार्य है?
अथवा
शिक्षा के कार्यों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर-
व्यक्ति के जीवन में शिक्षा के कार्य
(Functions of Education in Individual Life)
हम जानते हैं कि शिक्षा का सम्बन्ध व्यक्ति तथा समाज दोनों से ही है। यहाँ पर शिक्षा के उन कार्यों का वर्णन किया जायेगा जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के जीवन से होता है। शिक्षा के इन वर्गों के मुख्य कार्यों का निम्नलिखित वर्णन किया गया है -
1. बालक का सर्वागीण विकास शिक्षा का एक कार्य बालक का सर्वांगीण विकास करना भी है। शिक्षा बालक का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास करती है। शिक्षा द्वारा किये गये बालक के सर्वागीण विकास से जीवन भर लाभ ही प्राप्त होता है।
2. भौतिक सम्पन्नता प्रदान करना - यथार्थ जीवन में भौतिक सम्पन्नता का होना भी अनिवार्य है। आज के युग में शिक्षा का एक कार्य व्यक्ति को भौतिक सम्पन्नता प्राप्त करने के योग्य बनाना भी है। शिक्षा जीविकोपार्जन का महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा प्राप्त व्यक्ति धनोपार्जन कर सकता है।
3. आत्मनिर्भरता प्रदान करना - शिक्षा का कार्य आत्मनिर्भर बनाना भी है। शिक्षित व्यक्ति अपने समस्त कार्य स्वयं करने योग्य हो जाता है। ऐसा व्यक्ति समाज पर बोझ नहीं बनता बल्कि स्वयं समाज की कुछ न कुछ सहायता ही करता है। शिक्षा के इस कार्य के विषय में मिल्टन ने स्पष्ट रूप से कहा है 'मैं केवल उसी शिक्षा को पूर्ण शिक्षा कहता हूँ जो मनुष्य को शान्ति और युद्ध से सम्बन्धित निजी तथा सार्वजनिक समस्त कार्यों को उचित प्रकार से करने के योग्य बनाती है।'
4. मूल-प्रवृत्तियों का नियमन एवं शोधन करना - शिक्षा का एक कार्य बालक की मूल-प्रवृत्तियों को नियमित करना भी है। शिक्षा के अभाव में व्यक्ति की पाशविक प्रवृत्तियाँ प्रबल हो जाती हैं। शिक्षा इन पाशविक प्रवृत्तियों को सही दिशा प्रदान करती है। इससे बालक पथ भ्रष्ट होने से बच जाता है। डैनियल वेनस्टर के अनुसार, शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा, "अनुशासित हो, आवेग नियंत्रित हो, वास्तविक और अच्छे प्रेरक प्रोत्साहित किये जायें।
5. परिस्थितियों से अनुकूलन सिखाना जीवन में निरन्तर रूप से अनुकूल तथा प्रतिकूल परिस्थितियों से अनुकूलन स्थापित करना पड़ता है जो व्यक्ति सुशिक्षित है. इस प्रकार की परिस्थिति से सरलता से अनुकूलन स्थापित कर लेता है। वह संघर्षो तनावों, कुण्ठाओं एवं हताशाओं की स्थिति में विचलित नहीं होता बल्कि परिस्थितियों का सही ढंग से सामना करता है। यह शक्ति शिक्षा से आती है।
6. भावी जीवन को तैयार करना - शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य बालक या शिक्षार्थी के भावी जीवन को तैयार करना है। शिक्षा बालक को इस योग्य बना देती है जिससे वह अपने भावी जीवन के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक हो जाये अर्थात् "शिक्षा को प्रौढ़ जीवन के उत्तरदायित्वों और विशेष अधिकारों को निभाने योग्य बनाती है।
7. अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करना - ऐसा माना जाता है कि बालक में कुछ शक्तियाँ एवं क्षमताएँ निहित होती हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से यह स्पष्ट हो चुका है कि बालक की उचित शिक्षा की व्यवस्था हो तो उसकी ये निहित शक्तियाँ विकसित हो सकती हैं। इस स्थिति में शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार शिक्षा का एक मुख्य कार्य बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करना है। इस विषय में प्रसिद्ध पाश्चात्य शिक्षाशास्त्री पेस्तालॉजी का कथन उल्लेखनीय है, "शिक्षा मनुष्य के आन्तरिक शक्ति का स्वाभाविक, सर्वागीण तथा प्रगतिशील विकास है।
8. चरित्र का निर्माण करना एवं नैतिकता का विकास करना - शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करना तथा उसे नैतिक दृष्टि से उन्नत बनाना भी है। वास्तविक शिक्षा व्यक्ति के विभिन्न गुणो जैसेकि सत्य, न्याय, त्याग, सद्भावना, सहयोग तथा अहिंसा आदि के विकास में सहायक होती है। शिक्षा के इस कार्य को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। ऐसा माना जाता था कि चरित्रहीन ज्ञानी व्यक्ति निन्दनीय होता है। वास्तव में चरित्र का महत्व ज्ञान से भी अधिक माना जाता है। अनेक पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों ने भी शिक्षा के क्षेत्र में चरित्र निर्माण को विशेष महत्व दिया है।
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