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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार हेतु राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के कार्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में यह प्रावधान था कि राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद को शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं को प्रत्यापित करने तथा पाठ्यचर्या व पद्धतियों के सम्बन्ध में आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए यथोचित एवं अनिवार्य संसाधन तथा क्षमता उपलब्ध कराई जाएगी। इसे दृष्टिगत रखते हुए शिक्षक-शिक्षा प्रणाली के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद को सक्षम करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए 1986 में तैयार की गई कार्ययोजना में इसे संवैधानिक दर्जा प्रदान करना प्रस्तावित किया गया था। वस्तुतः राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद नामक संस्था का प्रादुर्भाव हुआ।
उद्देश्य-
केन्द्रीय सरकार ने निम्नलिखित उद्देश्य की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद का गठन किया -
1. सम्पूर्ण राष्ट्र में शिक्षक-शिक्षा के नियोजित तथा समन्वित विकास को सुनिश्चित करने के लिए। 2. शिक्षक - शिक्षा प्रणाली के मानकों व गुणवत्ता के निर्धारण व उनकी समुचित देखभाल करने के लिए।
3. शिक्षक-शिक्षा से सम्बन्धित अन्य समस्याओं पर विचार करने के लिए।
भारतीय संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद अधिनियम 1993 को राष्ट्रपति महोदय ने अपनी स्वीकृति 29 दिसम्बर 1993 को प्रदान कर इसे संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद का कार्य क्षेत्र व्यक्तियों को पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक स्तरों पर स्कूलों के अध्यापन कार्य करने के योग्य बनाने वाली शिक्षा, अनुसंधान व प्रशिक्षण के पाठ्यक्रमों से है। इसमें अनौपचारिक शिक्षा, अंशकालीन शिक्षा, प्रौढशिक्षा तथा पत्राचार शिक्षा सम्मिलित है।
एन.सी.टी.ई. के कार्य -
सेवापूर्व प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय शिक्षक-शिक्षा परिषद जो केन्द्र सरकार का संवैधानिक निकाय है। देश में शिक्षक-शिक्षा के नियोजित और समन्वित विकास का दायित्व परिषद पर है। एन.सी.टी.ई. शिक्षक-शिक्षा पाठ्यक्रमों के मानक, शिक्षक-शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता के विभिन्न स्तर के शिक्षक-शिक्षा पाठ्यक्रमों के लिए, छात्र-अध्यापकों के प्रवेश के लिए, पाठ्यक्रम घटक तथा अवधि एवं न्यूनतम योग्यता निर्धारित करती है। परिषद ऐसे पाठ्यक्रमों को शुरू करने की इच्छुक संस्थाओं, सरकारी सहायता प्राप्त और स्ववित्तपोषिता को मानक पूरा करने पर मान्यता भी प्रदान करती है, साथ ही इन मान्यता प्राप्त संस्थाओं की सतत निगरानी का भी कार्य करती है। परिषद द्वारा सेवापूर्व प्रशिक्षण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता मुख्यतः सर्वशिक्षा अभियान (एस.एस.ए.) के अन्तर्गत दी जाती है। सेवापूर्व प्रशिक्षण के लिए सरकारी और सरकार सहायित शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं को सम्बन्धित राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है।
इसके अतिरिक्त यह परिषद शिक्षक-शिक्षा के क्षेत्र में निम्नांकित महत्वपूर्ण कार्य करती है.
1. शिक्षक-शिक्षा के विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में यह केन्द्र व प्रान्तीय सरकारों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं विश्वविद्यालयों को सलाह देना।
2. समस्त प्रकार की शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं के लिए मानदण्डों का निर्धारण व उनका सतत निरीक्षण करना।
3. समस्त प्रकार की शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं के शिक्षकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता को निर्धारित करना और साथ ही उनके वेतनमान निर्धारित करना।
4. प्रत्येक स्तर के शिक्षक-शिक्षा पाठ्यक्रमों का निर्धारण करना तथा समय-समय पर नए-नए पाठ्यक्रम का प्रारम्भ करना।
5. शिक्षक-शिक्षा के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित सर्वेक्षण तथा अध्ययन करना।
6. शिक्षक-शिक्षा के क्षेत्र में उपर्युक्त योजनाएँ बनाना तथा उचित परामर्श देना।
7. देश में अध्यापक शिक्षा के विकास में समन्वय स्थापित करना।
8. छात्र अध्यापकों के प्रवेश हेतु न्यूनतम योग्यता का निर्धारण करना।
9. सेवारत शिक्षकों के लिए पुनर्बोधन कार्यक्रमों का निर्माण करना।
10. शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं के लिए शिक्षण-शुल्क अन्य शुल्क व छात्रवृत्तियों का निर्धारण करना।
11. शिक्षक-शिक्षा की मान्यता देने हेतु निरीक्षण पैनल का गठन करना तथा मानकों का निर्धारण करना।
12. शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं में प्रशिक्षुओं के चयन, प्रवेश, अवधि, पाठ्यवस्तु, शिक्षण-प्रशिक्षण व परीक्षा आदि का निर्धारण करना।
13. समस्त स्तर की शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं का समय-समय पर निरीक्षण करना, उचित मार्गदर्शन करना।
14. केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षक-शिक्षा के सम्बन्ध में लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करना।
15. शिक्षक-शिक्षा से सम्बन्धित संस्थाओं, कर्मचारियों तथा अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त शिकायतों व समस्याओं का निराकरण करना।
परिषद अपने क्षेत्रीय कार्यालयों जो अब सभी नई दिल्ली में ही स्थापित किए जा चुके हैं उनके माध्यम से देश में स्थापित समस्त मान्यता प्राप्त शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं से लगातार सम्पर्क बनाए रखती है। यह परिषद मानकों को पूरा करने वाली संस्थाओं तथा फर्जी तरीके से चल रही संस्थाओं को निरस्त करने तथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही भी करती है। यद्यपि वर्तमान में शिक्षक-शिक्षा की आवश्यकता से अधिक मान्यताएँ देने के कारण प्रशिक्षित शिक्षा प्रशिक्षुओं के समक्ष रोजगार की समस्या उत्पन्न हो रही है जिसके कारण परिषद ने कई राज्यों में नई मान्यता देने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है तथा मानकों की अवहेलना करने वाली संस्थाओं की मान्यता भी निरस्त की है जिसके कारण अब इस समस्या पर रोक लगाई जा सकती है। प्राय: यह देखा जाता है कि जब वित्तपोषित शिक्षक-शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति में मानकों की अनदेखी होती है तथा अनुमोदित शिक्षकों को मानदण्ड का वेतन भी नहीं दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर प्रशिक्षुओं से अवैध वसूली भी होती है।
यद्यपि परिषद इस दिशा में भी सतर्क हो रही है। वर्तमान समय में परिषद का मुख्य कार्य देश की समस्त शिक्षक-शिक्षा संस्थाओं में समन्वय स्थापित करना और उनका अनावश्यक विस्तार को रोकना है। शिक्षक-शिक्षा की गुणवत्ता में कमी का एक प्रमुख कारण इन संस्थाओं का तीव्रगति से खोला जाना है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम 2014 में कई ऐसे कड़े प्रावधान समाहित किए गए हैं जो शिक्षक-शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिल सकती है। एन.सी.टी.ई. संशोधित अधिनियम, 2014 के अन्तर्गत प्राथमिक स्तर के शिक्षक-शिक्षा पाठ्यक्रम का नाम पूरे देश में परिवर्तित कर डी.एल.एड. कर दिया गया है। इस कार्य से इस पाठ्यक्रम की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान स्थापित हुई है। साथ ही समस्त स्तर के पाठ्यक्रमों में आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन किया गया है तथा प्रशिक्षुता कार्य में भी आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। परीक्षा प्रणाली में भी सुधार किया गया है। ये परिवर्तन निश्चित रूप से शिक्षक-शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करेंगे।

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