लोगों की राय

बी ए - एम ए >> चित्रलेखा

चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

Like this Hindi book 0

बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- उच्च शिक्षा में उद्देश्यहीनता तथा दोषपूर्ण पाठ्यक्रम पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
उच्च शिक्षा में विचार
उद्देश्यहीनता - हमारी शिक्षा प्रणाली की प्रमुख समस्या यह है कि उसमें उद्देश्य का अभाव है। इसी कारण से हमारी पीढ़ी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी लक्ष्यविहीन है तथा इसी कारण वह उच्च शिक्षा को भी अनावश्यक समझने लगा है। उच्च शिक्षा से हमें ज्ञान प्राप्त होता है। हम सत्य की खोज कर सकते हैं, किसी भी समस्या को तार्किक दृष्टि से देख सकते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उच्च शिक्षा को रोजगार प्राप्त करने का एक साधन माना जा रहा है। यह दृष्टिकोण कई समस्याओं को जन्म देता है।
दोषपूर्ण पाठ्यक्रम - हमारे शिक्षा जगत में पाठ्यक्रम में नवीनता व व्यावहारिकता की माँग एक लम्बे समय से चली आ रही है। नये पाठ्यक्रम को विकसित नहीं किया जाता है। आज अनेक नये पाठ्यक्रम हैं जो शिक्षा क्षेत्र में नये विषयों व एक नई सोच के साथ आये हैं। इन पाठ्यक्रमों को सैद्धान्तिक व व्यावहारिक बनाकर अपनाना चाहिए। इससे रोजगार की समस्या का समाधान भी होगा।
शिक्षा का स्तर -विश्वविद्यालयों का शिक्षण स्तर भी गिर रहा है। विश्वविद्यालयों के प्रागंण में शिक्षा के स्थान पर राजनीति, जातिवाद, क्षेत्रवाद व सम्प्रदायवाद ने अपने पैर जमा लिए हैं। छात्रों की संख्या में दिनों-दिन होने वाली वृद्धि भी शिक्षा के स्तर को गिराने का कारण है।
माध्यम-उच्च शिक्षा में शिक्षा का माध्यम क्या हो? यह समस्या भी शिक्षा के क्षेत्र में आती है। अंग्रेजी का समर्थन करने वाला वर्ग भी केवल सम्पन्न वर्ग है जबकि अधिकांश लोग मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा के माध्यम की माँग करते हैं। विडम्बना ये है कि उच्च शिक्षा से सम्बन्धित अधिकांश पुस्तकें, शोध आदि सब अंग्रेजी में हैं
असन्तोषजनक परीक्षा प्रणाली-उच्च शिक्षा के क्षेत्र में परीक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है। निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली के जो दोष हैं वह सब इसमें है।
अनुशासनहीनता - छात्रों के मध्य अनुशासनहीनता चरम सीमा पर पहुँच गई हैं। आज विश्वविद्यालय परिसर राजनीति का अखाड़ा बने हुए हैं। न केवल छात्र अपितु उच्च पदों पर कार्य करने वाले कर्मचारी व शिक्षकगण भी इस रोग की चपेट में आये हुए हैं। धन सम्बन्धी अनियमितता, दुर्व्यवहार, यौन शोषण, चोरी, अपराध, परीक्षा-पत्रों का लीक होना, छात्रों को राजनीतिक दलों व नेताओं का संरक्षण आज विश्वविद्यालयों की पहचान बन गए हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book