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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- भारत में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
भारत में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति
भारत में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा केवल शहरी क्षेत्र तक ही सीमित है। अधिकांश पूर्व-प्राथमिक स्कूल निजी संस्थाओं के द्वारा संचालित हैं, केवल कुछ ही पूर्व-प्राथमिक शिक्षा केन्द्र राज्य या केन्द्र द्वारा संचालित है। यद्यपि राज्य उदार अनुदानों की सहायता से पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करता तथापि पूर्व-प्राथमिक की वर्तमान दशा सन्तोषप्रद नहीं है। पूर्व-प्राथमिक स्कूलों में केवल उच्च वर्ग के बालक ही पढ़ पाते हैं। इन स्कूलों का शुल्क अधिक होता है तथा कार्यक्रम्म इस प्रकार का होता है जिसका सम्बन्ध प्राय. सम्पन्न परिवारों के वातावरण से होता है। इसीलिए अधिकांश पूर्व-प्राथमिक स्कूलों के पास न तो उपयुक्त भवन हैं और न ही आवश्यक शिक्षण सामग्री। अप्रशिक्षित अध्यापक इन स्कूलों की सबसे बड़ी कमी है। अप्रशिक्षित अध्यापक शिशु मनोविज्ञान के मूलभूत सिद्धान्तों के ज्ञान के अभाव में परम्परागत शिक्षण करते हैं जोकि शिशुओं के स्वाभाविक विकास में बाधा उत्पन्न करता है। पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की वाँछित प्रगति न होने का एक प्रमुख कारण कुकुरमुत्ते की तरह से उगने वाले स्कूल भी हैं।
पूर्व-प्राथमिक स्कूल खोलने के लिए बेसिक शिक्षा अधिकारी की अनुमति आवश्यक है परन्तु अधिकांश स्कूल बिना किसी प्रकार की मान्यता किये चलाये जाते हैं। ऐसे स्कूलों के संचालन का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक धन कमाना होता है। विद्यालय में आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराने तथा छात्रों को ठीक ढंग से शिक्षित करने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। नर्सरी स्कूल चलाना एक ऐसा फायदेमंद व्यवसाय हो गया है कि प्रत्येक सक्षम व्यक्ति अपने मकान के दो कमरो में स्कूल खोलने की इच्छा रखता है। एक ही व्यक्ति द्वारा अनेक नर्सरी स्कूल चलाये जाने के उदाहरण भी मिलते हैं। इन सभी कारणों से पूर्व-प्राथमिक शिक्षा वाँछित प्रगति नहीं कर पा रही है। परन्तु यह सन्तोष का विषय है कि आम जनता तथा सरकार दोनों ही पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के महत्व को स्वीकार करने लगे हैं। अतः आवश्यक है कि सरकार व शिक्षाविज्ञ पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के प्रसार की व्यापक योजनाएँ बनाएं, जिससे सभी शिशुओं को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का लाभ मिल सके।

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